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Saturday, June 15, 2019

नागरिक शास्त्र-chapter-8.लोकतंत्र की चुनौतियाँ

8.लोकतंत्र की चुनौतियाँ

चुनौती का मतलब:

वैसी समस्या जो महत्वपूर्ण हो, जिसे पार पाया जा सके और जिसमें आगे बढ़ने के अवसर छुपे हुए हों, चुनौती कहलाती है। जब हम किसी चुनौती को जीत लेते हैं तो हम आगे बढ़ पाते हैं।
लोकतंत्र की मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
  • आधार तैयार करने की चुनौती
  • विस्तार की चुनौती
  • लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना

आधार तैयार करने की चुनौती

अभी भी दुनिया के 25% हिस्से में लोकतंत्र नहीं है। ऐसे हिस्सों में लोकतंत्र की चुनौती है वहाँ आधार बनाने की। ऐसे देशों में अलोकतांत्रिक सरकारें हैं। वहाँ से तानाशाही को हटाना होगा और सरकार पर से सेना के नियंत्रण को दूर करना होगा। उसके बाद एक स्वायत्त राष्ट्र की स्थापना करनी होगी जहाँ लोकतांत्रिक सरकार हो। इसे समझने के लिये नेपाल का उदाहरण लिया जा सकता है। नेपाल में अभी हाल तक राजतंत्र का शासन हुआ करता था। लोगों के वर्षों के आंदोलन के फलस्वरूप नेपाल में लोकतंत्र ने राजतंत्र को विस्थापित कर दिया। अभी नेपाल के लिये लोकतंत्र नया है इसलिए वहाँ लोकतंत्र का आधार बनाने की चुनौती है।

विस्तार की चुनौती

जिन देशों में लोकतंत्र वर्षों से मौजूद है वहाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती है। लोकतंत्र के विस्तार का मतलब होता है कि देश के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक सरकार के मूलभूत सिद्धांतो को लागू करना तथा लोकतंत्र के प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुँचाना। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के कई उदाहरण हो सकते हैं, जैसे कि स्थानीय स्वशाषी निकायों को अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से जोड़ना, आदि।
लोकतंत्र के विस्तार का एक और मतलब यह है कि ऐसे फैसलों कि संख्या कम से कम हो जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से परे हटकर लेना पड़े। आज भी हमारे देश में समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो मुख्यधारा से पूरी तरह से जुड़ नहीं पाये हैं। आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। ये सभी चुनौतियाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के उदाहरण हैं।

लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
हर लोकतंत्र को इस चुनौती का सामना करना पड़ता है। लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करने से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं। लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करने से लोगों को लोकतंत्र से अपनी अपेक्षाओं के बारे में सही जानकारी मिल सकती है। जन साधारण की लोकतंत्र से अपेक्षाएँ अलग-अलग समाज में अलग-अलग तरह की होती हैं।
अस्सी के दशक तक भारत में होने वाले चुनावों में बूथ लूटने और फर्जी मतदान की घटना आम बात हुआ करती थी। नब्बे के दशक की शुरुआत में टी एन शेषण मुख्य चुनाव आयुक्त बने। उन्होंने कई ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाए जिनसे राजनितिक दलों में अनुशासन आया और बूथ लूटने की घटनाएँ नगण्य हो गईं। इससे चुनाव आयोग को काफी मजबूती मिली और इसपर लोगों का विश्वास बढ़ गया।
अलग-अलग देश लोकतंत्र की अलग-अलग चुनौतियों का सामना करते हैं। किसी भी देश के समक्ष आने वाली एक खास चुनौती इस बात पर निर्भर करती है कि वह देश लोकतांत्रिक विकास के किस चरण पर है। किसी खास चुनौती से निबटने के तरीके भी अलग-अलग परिस्थितियों में भिन्न हो सकते हैं।
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राजनितिक शास्त्र-chapter-7.लोकतंत्र के परिणाम

7.लोकतंत्र के परिणाम

उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध शासन

लोकतंत्र से ऐसी सरकार बनती है जो जनता के लिये उत्तरदायी होती है और नागरिकों की उम्मीदों और मांगों पर ध्यान देती है।
अक्सर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी अलोकतांत्रिक सरकार के मुकाबले कोई लोकतांत्रिक सरकार कम कुशल हो। किसी भी अलोकतांत्रिक सरकार में आम सहमति बनाने की जरूरत नहीं पड़ती इसलिए अहम फैसले लेने में देर नहीं लगती है। लेकिन लोकतांत्रिक सरकार में आम सहमति बनाने की जरूरत पड़ती है इसलिए अहम फैसले लेने में देर होती है। लेकिन हमें यह सोचना होगा कि क्या अलोकतांत्रिक सरकार का फैसला जनता को मंजूर होता है। क्या वैसे फैसले वास्तव में लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।
लोकतांत्रिक सरकार अधिक पारदर्शी होती है। जनता के पास यह जानने का अधिकार होता है कि फैसले किन तरीकों से लिये गये या सरकार ने कोई कार्य कैसे किया। इसलिए एक लोकतांत्रिक सरकार जनता के लिये उत्तरदायी होती है और जनता का ध्यान रखती है।
लोकतांत्रिक सरकार को लोगों द्वारा चुना जाता है इसलिए ऐसी सरकार वैध होती है। इसलिए आज दुनिया के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक सरकारें चल रही हैं।

आर्थिक संवृद्धि और विकास:

यदि आर्थिक समृद्धि की बात की जाये तो इसमें तानाशाही शासन लोकतंत्र के मामले में आगे दिखता है। 1950 से 2000 तक के पचास वर्षों के आँकड़ों का अध्ययन करने से पता चलता है कि तानाशाही शासन व्यवस्था में आर्थिक समृद्धि बेहतर हुई है। लेकिन कई लोकतांत्रिक देश हैं जो दुनिया की आर्थिक शक्तियों में गिने जाते हैं। इसलिये यह कहा जा सकता है कि सरकार का प्रारूप किसी देश की आर्थिक समृद्धि को निर्धारित करने वाला अकेला कारक नहीं है। इसके अन्य कारक भी होते हैं, जैसे: जनसंख्या, वैश्विक स्थिति, अन्य देशों से सहयोग, आर्थिक प्राथमिकताएँ, आदि।
इसलिए हमें आर्थिक संवृद्धि के साथ अन्य सकारात्मक पहलुओं को भी देखना पड़ेगा। इस दृष्टिकोण से लोकतंत्र हमेशा तानाशाही से बेहतर होता है।

असमानता और गरीबी में कमी

आर्थिक असमानता पूरी दुनिया में बढ़ रही है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीब है। गरीबों और अमीरों की आय के बीच एक बहुत बड़ी खाई है। लोकतंत्र अधिकांश देशों में आर्थिक असमानता मिटाने में असफल ही रहा है।

सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य

हर देश सामाजिक विविधताओं से भरा हुआ है। इसलिए विभिन्न वर्गों के बीच टकराव होना स्वाभाविक है। लोकतंत्र ऐसे तरीकों का विकास करने में मदद करता है जिनसे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो सके। लोकतंत्र में लोग विविधता का सम्मान करना और मतभेदों के समाधान निकालना सीख जाते हैं। अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में सामाजिक विविधता में तालमेल बना रहता है। इसके कुछ अपवाद हो सकते हैं, जैसे: श्रीलंका।

नागरिकों की गरिमा और आजादी

लोकतंत्र ने नागरिकों को गरिमा और आजादी प्रदान की है। भारत में कई सामाजिक वर्ग हैं जिन्होंने वर्षों तक उत्पीड़न झेला है। लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के फलस्वरूप इन वर्गों के लोग भी आज सामाजिक व्यवस्था में ऊपर उठ पाये हैं और अपने हक को प्राप्त किया है।

महिलाओं की समानता

लोकतंत्र के कारण ही यह संभव हो पाया है कि महिलाएँ समान अधिकारों के लिये संघर्ष कर पाईं। आज अधिकांश लोकतांत्रिक देशों की महिलाओं को समाज में बराबर का दर्जा मिला हुआ है। तानशाह देशों में आज भी महिलाओं को समान अधिकार नहीं प्राप्त हैं।

जातिगत असमानता

जातिगत असामनता भारत में जड़ जमाये बैठी है। लेकिन लोकतंत्र के कारण इसकी संख्या काफी कम हुई है। आज पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति के लोग भी हर पेशे में शामिल होने लगे हैं।


NCERT Solution

प्रश्न 1:लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर: एक लोकतांत्रिक सरकार जनता के लिए जवाबदेह होती है। यदि कोई सरकार जनता की उम्मीदों के हिसाब से काम नहीं करती है तो अगले चुनाव में जनता उसे हटा देती है। इसलिए एक लोकतांत्रिक सरकार को जनता के लिए उत्तरदायी होना पड़ता है। ऐसी सरकार को बहुमत से चुना जाता है इसलिए यह एक वैध सरकार होती है।
प्रश्न 2:लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
उत्तर: विविधता के कारण टकराव को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता। लेकिन लोकतंत्र में ऐसे टकराव को न्यूनतम स्तर पर रखना संभव हो पाता है। लोकतंत्र में आम राय से बात आगे बढ़ती है और इस तरह से समाज के विभिन्न समूहों की आकांछाओं का सम्मान किया जाता है। यह दर्शाता है कि लोकतंत्र कि तरह से सामाजिक विविधताओं को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है।
प्रश्न 3:निम्नलिखित कथनों के पक्ष या विपक्ष में तर्क दें:
औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं पर गरीब देशों को आर्थिक विकास करने के लिए तानाशाही चाहिए।
उत्तर: कई तानाशाह देशों के उदाहरण से पता चलता है कि ऐसी शासन व्यवस्था में आर्थिक विकास ठीक से होता है लेकिन कुछ ऐसे लोकतांत्रिक देश भी हैं जहाँ की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है। कई गरीब देशों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हुए भी तरक्की की है; हाँ उनकी वृद्धि की दर थोड़ी धीमी जरूर है। यदि हम लाभ और हानि की तुलना करें तो कह सकते हैं केवल धनी बनने की आकांछा से तानाशाह को अपनाना सही विकल्प नहीं हो सकता है।
गरीब देशों की सरकार को अपने ज्यादा संसाधन गरीबी को कम करने और आहार, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर लगाने की जगह उद्योगों और बुनियादी आर्थिक ढ़ाँचे पर खर्च करने चाहिए।
उत्तर: रोजगार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करने के लिए यह जरूरी होता है कि उद्योग और बुनियादी ढ़ाँचे पर अधिक खर्च करना चाहिए लेकिन हम सामाजिक सुरक्षा की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते। कई लोग इतनी गरीब और दबे हुए होते हैं कि उनकी स्थिति सुधारने के लिए मदद की जरूरत होती है। ऐसे लोगों के लिए सबसे पहले गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शिक्षा को मुहैया कराना चाहिए। उद्योग और सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करने के मामले में एक सही तालमेल होना जरूरी है।
नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब, दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है।
उत्तर: यह एक वास्तविकता है कि किसी भी तरह की शासन व्यवस्था क्यों न हो जाए लेकिन आर्थिक असमानता को हटाया नहीं जा सकता। रूस और चीन जैसे देशों का समाजवाद के साथ पुराना अनुभव बतलाता है ऐसा समाज बनाना असंभव है जहाँ सभी लोग आर्थिक रूप से समान हों। यही बात लोकतंत्र के लिए भी लागू होती है।
लोकतंत्र में सभी को एक ही वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी तरह का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
उत्तर: सैद्धांतिक रूप से यह सही है कि एक व्यक्ति और एक वोट होने से प्रभुत्व के टकराव को समाप्त किया जा सकता है। लेकिन वास्तविक दुनिया में ऐसा नहीं होता क्योंकि समाज काफी जटिल होता है। लोगो या लोगों के समूह का यह नैसर्गिक गुण होता है कि दूसरे पर अपना प्रभुत्व जमाएँ। इसलिए किसी भी समाज में प्रभुत्व का टकराव तो होग ही। लेकिन ये बात भी सच है कि लोकतंत्र में इस तरह के टकराव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

प्रश्न 4:नीचे दिए गये ब्यौरों में लोकतंत्र की चुनौतियों की पहचान करें। ये स्थितियाँ किस तरह नागरिकों के गरिमापूर्ण, सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए चुनौती पेश करती हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत-संस्थागत उपाय भी सुझाएँ:
उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद ओड़िसा में दलितों और गैर-दलितों के प्रवेश के लिए अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी।
उत्तर: यह उदाहरण लोगों के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा की चुनौती को दर्शाता है। इस उदाहरण में समानता का अधिकार दिलाने के लिए न्यायपालिका ने हस्तक्षेप किया।
भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
उत्तर: यह आर्थिक असमानता की चुनौती को दर्शाता है। सरकार किसी प्रकार का कर्जा माफी लागू कर सकती है ताकि किसानों को आत्महत्या करने के लिए बाध्य न होना पड़े। इसके साथ ही सरकार कृषि उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करके भी किसानों की मदद कर सकती है।
जम्मू-कश्मीर के गंडवारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना के जाँच के आदेश दिए गये।
उत्तर: यह उदाहरण स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और समानता के अधिकर की चुनौती को दर्शाता है। इस मामले में पुलिस और न्यायपालिका को सही कदम उठाने की जरूरत है।
प्रश्न 5:लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में इनमें से कौन सा विचार सही है – लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने सफलतापूर्वक:
  • लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है।
  • लोगों के बीच आर्थिक असमानताएँ समाप्त कर दी है।
  • हाशिए के समूहों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में सारे मतभेद मिटा दिए हैं।
  • राजनीतिक गैर बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
उत्तर: राजनीतिक गैर बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
प्रश्न 6:लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिहाज से इनमें कोई एक चीज लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है। उसे चुनें:
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
  • व्यक्ति की गरिमा
  • बहुसंख्यक्तों का शासन
  • कानून से समक्ष समानता
उत्तर: बहुसंख्यक्तों का शासन

प्रश्न 7:लोकतांत्रिक व्यवस्था के राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के बारे में किए गए अध्ययन बताते हैं कि
  • लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।
  • लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
  • तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
  • तानाशाहियाँ लोकतंत्र से बेहतर साबित हुई हैं।
उत्तर: लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
प्रश्न 8:नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़ें:
नन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह पूर्वी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती वेलकम मजदूर कॉलोनी में रहता है। उसका राशन कार्ड गुम हो गया और जनवरी 2006 में उसने डुप्लीकेट राशन कार्ड बनाने के लिए अर्जी दी। अगले तीन महीनों तक उसने राशन विभाग के दफ्तर के कई चक्कर लगाए लेकिन वहाँ तैनात किरानी और अधिकारी उसका काम करने या उसकी अर्जी की स्थिति बताने को कौन कहे उसको देखने तक के लिए तैयार न थे। आखिरकार उसने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए अपनी अर्जी की दैनिक प्रगति का ब्यौरा देने का अवेदन किया।
इसके साथ ही उसने इस अर्जी पर काम करने वाले अधिकारियों के नाम और काम न करने की सूरत में उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का ब्यौरा भी माँगा। सूचना के अधिकार वाला आवेदन देने के हफ्ते भर के अंदर खाद्य विभाग का एक इंस्पेक्टर उसके घर आया और उसने नन्नू को बताया कि तुम्हारा राशन कार्ड तैयार है और तुम दफ्तर आकर उसे ले जा सकते हो। अगले दिन जब नन्नू राशन कार्ड लेने गया तो उस इलाके के खाद्य और आपूर्ति विभाग के अगले सबसे बड़े अधिकारी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। इस अधिकारी ने उसे चाय की पेशकश की और कहा कि अब आपका काम हो गया है इसलिए सूचना के अधिकार वाला अपना आवेदन आप वापस ले लें।
नन्नू का उदाहरण क्या बताता है? नन्नू के इस आवेदन का अधिकारियों पर क्या असर हुआ? अपने माँ पिताजी से पूछिए कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास जाने का उनका अनुभव कैसा रहा है।
उत्तर: नन्नू का उदाहरण बताता है कि सूचना के अधिकार के लागू होने के बाद कोई भी व्यक्ति सरकार के कामकाज का हिसाब माँग सकता है। इस जानकारी से सरकारी दफ्तरों में सुस्त रफ्तार से काम करने की परिपाटी खत्म होने लगी है। नन्नू के आवेदन से अधिकारी हरकत में आ गये क्योंकि अब उन्हें देरी का कारण बताने के लिए बाध्य होना पड़ता। मेरे माता पिता का कहना है कि ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में समय पर कोई भी काम नहीं होता।

Extra Questions Answers

प्रश्न 1:लोकतंत्र का सबसे अहम परिणाम क्या हुआ है?
उत्तर: उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध शासन
प्रश्न 2:लोकतंत्र में अक्सर अहम फैसले लेने में देर होती है। क्यों?
उत्तर: लेकिन लोकतांत्रिक सरकार में आम सहमति बनाने की जरूरत पड़ती है इसलिए अहम फैसले लेने में देर होती है।
प्रश्न 3:लोकतंत्र में आम सहमति से जो फैसले लिये जाते हैं उनका क्या लाभ होता है?
उत्तर: लोकतंत्र में कोई भी फैसला आम सहमति से लिया जाता है। ऐसे फैसले वैध होते हैं क्योंकि वे जनता को मंजूर होते हैं। ऐसे फैसले वास्तव में लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।

प्रश्न 4:लोकतांत्रिक सरकार किस तरह से पारदर्शी होती है?
उतर: लोकतांत्रिक सरकार अधिक पारदर्शी होती है। जनता के पास यह जानने का अधिकार होता है किस फैसले किन तरीकों से लिये गये या सरकार ने कोई कार्य कैसे किया।
प्रश्न 5:आप कैसे कह सकते हैं कि लोकतांत्रिक सरकार वैध होती है?
उत्तर: लोकतांत्रिक सरकार को लोगों द्वारा चुना जाता है इसलिए ऐसी सरकार वैध होती है।

प्रश्न 6:आर्थिक असमानता मिटाने में लोकतंत्र कहाँ तक सफल हो पाया है?
उत्तर: लोकतंत्र अधिकांश देशों में आर्थिक असमानता मिटाने में असफल ही रहा है।
प्रश्न 7:महिलाओं को समान अधिकार दिलवाने में लोकतंत्र की क्या भूमिका रही है?
उत्तर: लोकतंत्र के कारण ही यह संभव हो पाया है कि महिलाएँ समान अधिकारों के लिये संघर्ष कर पाईं। आज अधिकांश लोकतांत्रिक देशों की महिलाओं को समाज में बराबर का दर्जा मिला हुआ है। तानशाह देशों में आज भी महिलाओं को समान अधिकार नहीं प्राप्त हैं।
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नागरिक शास्त्र-chapter-6.राजनीतिक पार्टी

6.राजनीतिक पार्टी

एक ऐसा समूह जिसका निर्माण चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से हुआ हो, राजनीतिक पार्टी या दल कहलाता है। किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल लोग कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं जिसका लक्ष्य समाज का भलाई करना होता है।
एक राजनीतिक पार्टी लोगों को इस बात का भरोसा दिलाती है उसकी नीतियाँ अन्य पार्टियों से बेहतर हैं। वह चुनाव जीतने की कोशिश करती है ताकि अपनी नीतियों को लागू कर सके।
विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ हमारे समाज के मूलभूत राजनैतिक विभाजन का प्रतिबिंब होते हैं। कोई भी राजनीतिक पार्टी समाज के किसी खास पार्ट का प्रतिनिधित्व करती इसलिए इसमें पार्टिजनशिप की बात होती है। किसी भी पार्टी की पहचान इससे बनती है कि वह समाज के किस पार्ट की बात करती है, किन नीतियों का समर्थन करती है और किनके हितों की वकालत करती है। एक राजनैतिक पार्टी के तीन अवयव होते हैं।
  • नेता
  • सक्रिय सदस्य
  • अनुयायी

राजनीतिक पार्टी के कार्य:

राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का इस्तेमाल करना ही किसी पार्टी का मुख्य कार्य होता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राजनीतिक पार्टियाँ निम्नलिखित कार्य करती हैं:
चुनाव लड़ना: राजनीतिक पार्टी चुनाव लड़ती है। एक पार्टी अलग अलग निर्वाचन क्षेत्रों के लिये अपने उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है।
नीति बनाना: हर राजनीतिक पार्टी जनहित को लक्ष्य में रखते हुए अपनी नीति बनाती है। वह अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के सामने प्रस्तुत करती है। इससे जनता को इस बात में मदद मिलती है कि वह किसी एक पार्टी का चुनाव कर सके। एक राजनीतिक पार्टी एक ही मानसिकता वाले लाखों करोड़ों मतदाताओं को एक ही छत के नीचे लाने का काम करती है। जब किसी पार्टी को जनता सरकार बनाने के लिये चुनती है तो वह उस पार्टी से अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को मूर्त रूप देने की अपेक्षा रखती है।

कानून बनाना: हम जानते हैं कि विधायिका में समुचित बहस के बाद ही कोई कानून बनता है। विधायिका के ज्यादातर सदस्य राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं इसलिए किसी भी कानून के बनने की प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियों की प्रत्यक्ष भूमिका होती है।
सरकार बनाना: जब कोई राजनीतिक पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतती है तो वह सरकार बनाती है। सत्ताधारी पार्टी के लोग ही कार्यपालिका का गठन करते हैं। सरकार चलाने के लिये विभिन्न राजनेताओं को अलग अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी जाती है।
विपक्ष की भूमिका: जो पार्टी सरकार नहीं बना पाती है उसे विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ती है।
जनमत का निर्माण: राजनीतिक पार्टी का एक महत्वपूर्ण काम होता है जनमत का निर्माण करना। इसके लिये वे विधायिका और मीडिया में ज्वलंत मुद्दों को उठाती हैं और उन्हें हवा देती हैं। पार्टी के कार्यकर्ता पूरे देश में फैलकर अपने मुद्दों से जनता को अवगत कराते हैं।
सरकारी मशीनरी तक लोगों की पहुँच बनाना: राजनीतिक पार्टी लोगों और सरकारी मशीनरी के बीच एक कड़ी का काम करती है। वे जनकल्याण योजनाओं को लोगों तक पहुँचाती हैं।

राजनीतिक पार्टी की जरूरत

लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है। यदि कोई पार्टी न हो तो हर उम्मीदवार एक स्वतंत्र उम्मीदवार होगा। भारत में लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं। यदि हर सदस्य स्वतंत्र रूप से चुनाव जीत कर आयेगा तो स्थिति बड़ी भयावह हो जायेगी। कोई भी दो सदस्य किसी एक मुद्दे पर एक ही तरह से सोचने में असमर्थ होगा। एक सांसद हमेशा अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्र हित को दरकिनार कर देगा। राजनीतिक पार्टी विभिन्न सोच के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का काम करती ताकि वे सभी मिलकर किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी सोच बना सकें।
आज पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया गया है। ऐसे लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं। यथार्थ में यह संभव नहीं है कि हर नागरिक प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने में योगदान दे पाये। इसी सिस्टम ने राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है।

कितने राजनीतिक दल

कुछ देशों में एक ही पार्टी होती है, जबकि कुछ देशों में दो पार्टियाँ होती हैं तो कुछ देशों में अनेक पार्टियाँ होती हैं। किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं। हर तरह के सिस्टम के अपने गुण और दोष होते हैं।
चीन में एकल पार्टी सिस्टम है। लेकिन लोकतंत्र के दृष्टिकोण से यह सही नहीं है क्योंकि एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में दो पार्टी सिस्टम है। ऐसे सिस्टम में लोगों के पास विकल्प होता है।
भारत में मल्टी पार्टी सिस्टम है और यहाँ कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं। भारत के समाज में भारी विविधता है। इसलिए यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है। मल्टी पार्टी सिस्टम में कई खामियाँ लगती हैं। कई बार इससे राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है और साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है। लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग-अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी सिस्टम से ही संभव हो पाता है।
आजादी के बाद के शुरुआती दिनों से लेकर 1977 भारत में केंद्र में केवल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती थी। 1977 से 1980 के बीच जनता पार्टी की सरकार बनी। उसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस की सरकार बनी। फिर दो साल के अंतराल के बाद फिर से 1991 से 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही। फिर अगले 8 वर्षों तक गठबंधन की सरकारों का दौर चला। 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस पार्टी की ऐसी सरकार रही जिसमें अन्य पार्टियों का गठबंधन था। 2014 में 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और वह अपने दम पर सरकार बना पाई।

राजनैतिक दलों में जन-भागीदारी:

लोगों में एक आम धारणा बैठ गई है कि लोग राजनीतिक पार्टियों के प्रति उदासीन हो गये हैं। लोग राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा नहीं करते हैं।
जो सबूत उपलब्ध हैं वो ये बताते हैं कि यह धारणा भारत के लिये कुछ हद तक सही है। पिछले कई दशकों में किये गये सर्वे से प्राप्त सबूतों के आधार पर निम्न बातें सामने आती हैं:
पूरे दक्षिण एशिया मे लोगों का विश्वास राजनीतिक पार्टियों पर से उठ गया है। सर्वे में पूछा गया कि वे राजनीतिक पार्टियों पर ‘एकदम भरोसा नहीं’ या ‘बहुत भरोसा नहीं’ या ‘कुछ भरोसा’ या ‘पूरा भरोसा’ करते हैं। ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जिन्होंने कहा कि वे ‘एकदम भरोसा नहीं’ या ‘बहुत भरोसा नहीं’ करते हैं। जिन्होंने यह कहा कि वे ‘कुछ भरोसा’ या ‘पूरा भरोसा’ करते हैं उनकी संख्या कम थी।
पूरी दुनिया में लोग राजनीतिक दलों पर कम ही भरोसा करते हैं और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं।
लेकिन जब बात लोगों द्वारा राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों में भाग लेने की आती है तो स्थिति अलग हो जाती है। कई विकसित देशों की तुलना में भारत में ऐसे लोगों का अनुपात अधिक है जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं।
पिछले तीन दशकों में ऐसे लोगों का प्रतिशत बढ़ा है जिन्होंने यह माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं।
इस अवधि में ऐसे लोगों का अनुपात भी बढ़ा है जिन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के करीब हैं।

राष्ट्रीय पार्टी

भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है। हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है। लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है। जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं।
राज्य स्तर की पार्टी: जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं।
राष्ट्रीय स्तर की पार्टी: जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है।

इस वर्गीकरण के अनुसार 2006 में देश में छ: राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं। इनका वर्णन नीचे दिया गया है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: इसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी। भारत की आजादी में इस पार्टी की मुख्य भूमिका रही है। भारत की आजादी के बाद के कई दशकों तक कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई है। आजादी के बाद के सत्तर वर्षों में पचास से अधिक वर्षों तक इसी पार्टी की सरकार रही है।
भारतीय जनता पार्टी: इस पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी। इस पार्टी को भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में माना जा सकता है। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य है एक शक्तिशाली और आधुनिक भारत का निर्माण। भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है। यह पार्टी जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलय चाहती है। यह धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना चाहती है और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है। 1990 के दशक में इस पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा। यह पार्टी पहली बार 1998 में सत्ता में आई और 2004 तक शासन किया। उसके बाद यह पार्टी 2014 में सत्ता में आई है।
बहुजन समाज पार्टी: इस पार्टी की स्थापना कांसी राम के नेतृत्व में 1984 में हुई थी। यह पार्टी बहुजन समाज के लिये सत्ता चाहती है। बहुजन समाज में दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं। इस पार्टी की पकड़ उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी है और यह उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार भी बना चुकी है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी – मार्क्सवादी: इस पार्टी की स्थापना 1964 में हुई थी। इस पार्टी की मुख्य विचारधारा मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर आधारित है। यह पार्टी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती है। इस पार्टी को पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में अच्छा समर्थन प्राप्त है; खासकर से गरीबों, मिल मजदूरों, किसानों, कृषक श्रमिकों और बुद्धिजीवियों के बीच्। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इस पार्टी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है और पश्चिम बंगाल की सत्ता इसके हाथ से निकल गई है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी: इस पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी। इसकी नीतियाँ सीपीआई (एम) से मिलती जुलती हैं। 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद यह कमजोर हो गई। इस पार्टी को केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडु में ठीक ठाक समर्थन प्राप्त है। लेकिन इसका जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से खिसका है। 2004 के लोक सभा चुनाव में इस पार्टी को 1.4% वोट मिले और 10 सीटें मिली थीं। शुरु में इस पार्टी ने यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था लेकिन 2008 के आखिर में इसने समर्थन वापस ले लिया।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी: कांग्रेस पार्टी में फूट के परिणामस्वरूप 1999 में इस पार्टी का जन्म हुआ था। यह पार्टी लोकतंत्र, गांधीवाद, धर्मनिरपेक्षता, समानता, सामाजिक न्याय और संघीय ढ़ाँचे की वकालत करती है। यह महाराष्ट्र में काफी शक्तिशाली है और इसको मेघालय, मणिपुर और असम में भी समर्थन प्राप्त है।
क्षेत्रीय पार्टियों का उदय: पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है। यह भारत में लोकतंत्र के फैलाव और उसकी गहरी होती जड़ों को दर्शाता है। कुछ क्षेत्रीय नेता अपने अपने राज्यों में काफी शक्तिशाली हैं। समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके, डीएमके, आदि क्षेत्रीय पार्टी के उदाहरण हैं।

राजनीतिक दलों के लिये चुनौतियाँ:

आंतरिक लोकतंत्र का अभाव: अधिकांश पार्टियों का नियंत्रण कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में रहता है। पार्टी का साधारण सदस्य शायद ही ऊँचे पदों पर पहुँचने का सपना देख पाता है। शीर्ष नेतृत्व अक्सर जमीनी कार्यकर्ताओं से कटा हुआ रहता है। इसलिए कार्यकर्ता अपनी पार्टी से स्वामिभक्ति करने की बजाय शीर्ष नेतृत्व से स्वामिभक्ति करते हैं।
वंशवाद: कई पार्टियों में शीर्ष नेतृत्व के लोग किसी एक ही परिवार के सदस्य होते हैं। जब पार्टी का उत्तराधिकार जन्म के आधार पर मिलने लगे तो वहाँ लोकतंत्र बेमानी हो जाता है। यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी है।

पैसा और अपराधी तत्वों का प्रभाव: चुनाव में काँटे की टक्कत होती है और उसे जीतना किसी भी पार्टी के लिये बहुत बड़ी चुनौती होती है। इसके लिये राजनीतिक पार्टी हर तरह के हथकंडे अपनाती है। चुनाव के दौरान पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। मतदाताओं और चुनाव अधिकारियों को डराने धमकाने के लिए आपराधिक तत्वों का सहारा भी लिया जाता है।
विकल्पहीनता: ज्यादातर पार्टियाँ एक दूसरे की कार्बन कॉपी लगती हैं। बहुत कम ही राजनीतिक पार्टी एक सही विकल्प दे पाती हैं। लोगों के पास आगे खाई और पीछे कुआँ वाली स्थिती रहती है और दोनों में से किसी एक को चुनने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता है। कई राज्यों में तो हर पाँच साल पर सत्ताधारी पार्टी बदल जाती है लेकिन फिर भी लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आ पाता।

राजनीतिक दलों को सुधारने के उपाय:

हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में सुधार लाने के लिये कुछ उपाय नीचे दिये गये हैं:
दलबदल कानून: इस कानून को राजीव गांधी की सरकार के समय पास किया गया था। इस कानून के मुताबिक यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी बदलता है तो उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो जायेगी। इस कानून से दलबदल को कम करने में काफी मदद मिली है। लेकिन इस कानून ने पार्टी में विरोध का स्वर उठाना मुश्किल कर दिया है। अब सांसद या विधायक को हर वह बात माननी पड़ती है जो पार्टी के नेता का निर्णय होता है।
नामांकण के समय संपत्ति और क्रिमिनल केस का ब्यौरा देना:अब चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह नामांकण के समय एक शपथ पत्र दे जिसमें उसकी संपत्ति और उसपर चलने वाले क्रिमिनल केस का ब्यौरा हो। इससे जनता के पास अब उम्मीदवार के बारे में अधिक जानकारी होती है। लेकिन उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना की सत्यता जाँचने के लिये अभी कोई भी सिस्टम नहीं बना है।
अनिवार्य संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न: चुनाव आयोग ने अब पार्टियों के लिये संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न को अनिवार्य कर दिया है। राजनीतिक पार्टियों ने इसे शुरु कर दिया है लेकिन अभी यह महज औपचारिकता के तौर पर होता है।

भविष्य के लिये सलाह:

राजनीतिक पार्टी के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिये एक कानून बनाया जाये।
हर पार्टी के लिये यह अनिवार्य हो कि कुछ टिकट (लगभग एक तिहाई) महिला उम्मीदवारों को दें।
चुनाव का खर्चा सरकार वहन करे। चुनावी खर्चे का वहन करने के लिये सरकार की ओर से पार्टियों को पैसे मिलने चाहिए। कुछ खर्चे सुविधाओं के रूप में दिये जा सकते हैं; जैसे पेट्रोल, कागज, टेलिफोन, आदि। या किसी पार्टी द्वारा पिछले चुनाव में जीते गये वोटों के आधार पर सरकार कैश दे सकती है।
दो अन्य तरीके हैं जिनसे राजनीतिक पार्टियों में सुधार किया जा सकता है। ये तरीके हैं; लोगों का दबाव और लोगों की भागीदारी।

NCERT Solution

प्रश्न 1:लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा करें।
उत्तर: राजनीतिक दलों की निम्न भूमिका होती है:
  • चुनाव लड़ना
  • सरकार बनाना और सरकार चलाना
  • चुनाव हारने वाली पार्टी विपक्ष की भूमिका निभाती है।
  • राजनीतिक दल लोगों को सरकारी मशीनरी से जोड़ते हैं और लोगों तक सरकार की समाज कल्याण योजनाएँ पहुँचाते हैं।
  • जनता की धारणा को बनाते हैं, नियम और कानून बनाते हैं।
प्रश्न 2:राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर: राजनीतिक दलों के सामने विभिन्न चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
  • आंतरिक लोकतंत्र का अभाव
  • वंशवाद
  • पैसा और अपराधी तत्वों का प्रभाव
  • एक सकारात्मक विकल्प देने की अक्षमता
प्रश्न 3:राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढ़ंग से करें, इसके लिए उन्हें मजबूत बनाने के कुछ सुझाव दें।
उत्तर:राजनीतिक दल के बेहतर कामकाज और मजबूती के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:
  • राजनीतिक पार्टी के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिये एक कानून बनाया जाये।
  • हर पार्टी के लिये यह अनिवार्य हो कि कुछ टिकट (लगभग एक तिहाई) महिला उम्मीदवारों को दें।
  • चुनाव का खर्चा सरकार वहन करे। चुनावी खर्चे का वहन करने के लिये सरकार की ओर से पार्टियों को पैसे मिलने चाहिए। कुछ खर्चे सुविधाओं के रूप में दिये जा सकते हैं; जैसे पेट्रोल, कागज, टेलिफोन, आदि। या किसी पार्टी द्वारा पिछले चुनाव में जीते गये वोटों के आधार पर सरकार कैश दे सकती है।
  • दो अन्य तरीके हैं जिनसे राजनीतिक पार्टियों में सुधार किया जा सकता है। ये तरीके हैं; लोगों का दबाव और लोगों की भागीदारी।
प्रश्न 4:राजनीतिक दल का क्या अर्थ होता है?
उत्तर: लोगों का ऐसा समूह जो चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से बनता है उसे राजनीतिक दल कहते है। इस समूह में एकत्रित लोग समाज का भला करने के खयाल से कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं।

प्रश्न 5:किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं?
उत्तर: इस तरह से राजनीतिक दल समाज के मूलभूत राजनैतिक विभाजन का आइना होते हैं। कोई भी पार्टी सोसाइटी के किसी खास पार्ट का प्रतिनिधित्व करती है और इसलिये इसमें पार्टिजनशिप की बात होती है। इसलिये कोई भी पार्टी इस बात के लिये जानी जाती है कि यह समाज के किस पार्ट की बात करती है, किन नीतियों का समर्थन करती है और किनके हितों की वकालत करती है।
प्रश्न 6:चुनाव लड़ने और सरकार में सत्ता सँभालने के लिए एकजुट हुए लोगों के समूह को ..................कहते हैं।
उत्तर: राजनीतिक दल
प्रश्न 7:सूची 1 और सूची 2 का मिलान करें:
सूची 1सूची 2
1. कांग्रेस पार्टीa) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
2. भारतीय जनता पार्टी b) प्रांतीय दलb) प्रांतीय दल
3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)c) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
4. तेलुगुदेशम पार्टीd) वाम मोर्चा
उत्तर: 1 c, 2 a, 3 d, 4 b
प्रश्न 8:इनमें से कौन बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक हैं?
  • कांशीराम
  • साहू महाराज
  • बी. आर. अंबेडकर
  • ज्योतिबा फूले
उत्तर:a) कांशीराम

प्रश्न 9:भारतीय जनता पार्टी का मुख्य प्रेरक सिद्धांत क्या है?
  • बहुजन समाज
  • क्रांतिकारी लोकतंत्र
  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
  • आधुनिकता
उत्तर: a) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
प्रश्न 10:पार्टियों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर गौर करें:
  • राजनीतिक दलों पर लोगों का ज्यादा भरोसा नहीं है।
  • दलों में अक्सर बड़े नेताओं के घोटालों की गूँज सुनाई देती है।
  • सरकार चलाने के लिए पार्टियों का होना जरूरी नहीं।
इन कथनों में से कौन सही है?
उत्तर: a और b
प्रश्न 11:निम्नलिखित उद्धरण को पढ़ें और नीचे दिए गए प्रश्नों का जवाब दें:
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। गरीबों के आर्थिक और सामाजिक विकास के प्रयासों के लिए उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उन्हें और उनके द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक को संयुक्त रूप से वर्ष 2006 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। फरवरी 2007 में उन्होंने एक राजनीतिक दल बनाने और संसदीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनका उद्देश्य सही नेतृत्व को उभारना, अच्छा शासन देना और नए बांग्लादेश का निर्माण करना है। उन्हें लगता है कि पारंपरिक दलों से अलग एक नए राजनीतिक दल से ही नई राजनीतिक संस्कृति पैदा हो सकती है। उनका दल निचले स्तर से लेकर ऊपर तक लोकतांत्रिक होगा।
नागरिक शक्ति नामक इस नये दल के गठन से बांग्लादेश में हलचल मच गई है। उनके फैसले को काफी लोगों ने पसंद किया तो अनेक को यह अच्छा नहीं लगा। एक सरकारी अधिकारी शाहेदुल इस्लाम ने कहा, “मुझे लगता है कि अब बांग्लादेश में अच्छे और बुरे के बीच चुनाव करना संभव हो गया है। अब एक अच्छी सरकार की उम्मीद की जा सकती है। यह सरकार न केवल भ्रष्टाचार से दूर रहेगी बल्कि भ्रष्टाचार और काले धन की समाप्ति को भी अपनी प्राथमिकता बनाएगी।“
पर दशकों से मुल्क की राजनीति में रुतबा रखने वाले पुराने दलों के नेताओं में संशय है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है, “नोबेल पुरस्कार जीतने पर क्या बहस हो सकती है पर राजनीति एकदम अलग चीज है। एकदम चुनौती भरी और अक्सर विवादास्पद।“ कुछ अन्य लोगों का स्वर तो और कड़ा था। वे उनके राजनीति में आने पर सवाल उठाने लगे। एक राजनीतिक प्रेक्षक ने कहा, “देश से बाहर की ताकतें उन्हें राजनीति पर थोप रही हैं।“
क्या आपको लगता है कि यूनुस ने नई राजनीतिक पार्टी बनाकर ठीक किया?
क्या आप विभिन्न लोगों द्वारा जारी बयानों और अंदेशों से सहमत हैं? इस पार्टी को दूसरों से अलग काम करने के लिए खुद को किस तरह संगठित करना चाहिए? अगर आप इस राजनीतिक दल के संस्थापकों में एक होते तो इसके पक्ष में क्या दलील देते?
उत्तर: मोहम्मद यूनुस ने नई राजनीतिक पार्टी बनाकर सही काम किया। एक सरकारी अधिकारी के बयान से मैं सहमत हूँ। एक बड़े नेता के बयान से भी मैं सहमत हूँ लेकिन आंशिक रूप से। आज राजनीति इसलिए खराब हो गई है क्योंकि अच्छे लोग इससे दूर रहना चाहते हैं। मोहम्मद यूनुस ने राजनीति में जाने की हिम्मत दिखाई है। उन्हें साफ छवि वाले लोगों और बुद्धिजीवियों को अपने संगठन में लाने की कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह से ग्रामीण बैंक के जरिये उन्होंने गरीबों तक बैंकिंग सेवा को पहुँचाया है उसी तरह उन्हें अच्छी राजनीति को लोगों तक पहुँचाने का पूरा हक है।


Extra Questions Answers

प्रश्न 1:राजनीतिक पार्टी से क्या समझते हैं?
उत्तर: लोगों का ऐसा समूह जो चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से बनता है उसे राजनीतिक दल कहते है।
प्रश्न 2:राजनीतिक पार्टी के मुख्य घटक क्या होते हैं?
उत्तर: राजनीतिक पार्टी के तीन मुख्य घटक होते हैं: नेता, सक्रिय सदस्य और अनुयायी।
प्रश्न 3:राजनीतिक पार्टी का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर: राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का इस्तेमाल करना ही किसी पार्टी का मुख्य कार्य होता है।
प्रश्न 4:अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये राजनीतिक पार्टी क्या-क्या काम करती है?
उत्तर: अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये राजनीतिक पार्टी निम्नलिखित काम करती है:
  • चुनाव लड़ना
  • नीति बनाना
  • कानून बनाना
  • सरकार बनाना
  • विपक्ष की भूमिका
  • जनमत का निर्माण
  • सरकारी मशीनरी तक लोगों की पहुँच बनाना

प्रश्न 5:राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर: लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है। यदि कोई पार्टी न हो तो हर उम्मीदवार एक स्वतंत्र उम्मीदवार होगा। भारत में लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं। यदि हर सदस्य स्वतंत्र रूप से चुनाव जीत कर आयेगा तो स्थिति बड़ी भयावह हो जायेगी। कोई भी दो सदस्य किसी एक मुद्दे पर एक ही तरह से सोचने में असमर्थ होगा। एक सांसद हमेशा अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्र हित को दरकिनार कर देगा। राजनीतिक पार्टी विभिन्न सोच के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का काम करती ताकि वे सभी मिलकर किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी सोच बना सकें।
प्रश्न 6:एकल पार्टी सिस्टम की सबसे बड़ी खामी क्या है?
उत्तर: लोकतंत्र के दृष्टिकोण से यह सही नहीं है क्योंकि एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है।
प्रश्न 7:किसी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के क्या कारण होते हैं?
उत्तर: किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं।
प्रश्न 8:भारत में किस प्रकार का पार्टी सिस्टम है? विवेचना करें।
उत्तर: भारत में मल्टी पार्टी सिस्टम है और यहाँ कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं। भारत के समाज में भारी विविधता है। इसलिए यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है। मल्टी पार्टी सिस्टम में कई खामियाँ लगती हैं। कई बार इससे राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है और साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है। लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग-अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी सिस्टम से ही संभव हो पाता है।

प्रश्न 9:किस प्रकार की पार्टी को राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा मिलता है?
उत्तर: जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं।
प्रश्न 10:किस प्रकार की पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी कहा जाता है?
उत्तर: जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6% वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है।
प्रश्न 11:मान्यताप्राप्त पार्टी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है। हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है। लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है। जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं।
☆END☆

नागरिक शास्त्र-chapter-5.जन संघर्ष और आंदोलन

5.जन संघर्ष और आंदोलन

लामबंदी और संगठन

राजनैतिक पार्टियाँ: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें राजनैतिक पार्टी कहते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं ताकि सरकार बना सकें।
दबाव समूह: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में परोक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें दबाव समूह कहते हैं। सरकार बनाना या सरकार चलाना कभी भी दबाव समूह का लक्ष्य नहीं होता है।

दबाव समूह और आंदोलन:

दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, रुचि, महात्वाकांछा या मतों वाले लोग किसी समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक मंच पर आते हैं। इस प्रकार के समूह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आंदोलन करते हैं। यह जरूरी नहीं कि हर दबाव समूह जन आंदोलन ही करे। कई दबाव समूह केवल अपने छोटे से समूह में ही काम करते हैं।
जन आंदोलन के कुछ उदाहरण हैं: नर्मदा बचाओ आंदोलन, सूचना के अधिकार के लिये आंदोलन, शराबबंदी के लिये आंदोलन, नारी आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन।

वर्ग विशेष के हित समूह और जन सामान्य के हित समूह

वर्ग विशेष के हित समूह: जो दबाव समूह किसी खास वर्ग या समूह के हितों के लिये काम करते हैं उन्हें वर्ग विशेष के समूह कहते हैं। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, बिजनेस एसोसियेशन, प्रोफेशनल (वकील, डॉक्टर, शिक्षक, आदि) के एसोसियेशन। ऐसे समूह किसी खास वर्ग की बात करते हैं; जैसे मजदूर, शिक्षक, कामगार, व्यवसायी, उद्योगपति, किसी धर्म के अनुयायी, आदि। ऐसे समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना।
जन सामान्य के हित समूह: जो दबाव समूह सर्व सामान्य जन के हितों की रक्षा करते हैं उन्हें जन सामान्य के हित समूह कहते हैं। ऐसे दबाव समूह का उद्देश्य होता है पूरे समाज के हितों की रक्षा करना। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, स्टूडेंट यूनियन, एक्स आर्मीमेन एसोसियेशन, आदि।

राजनीति पर दबाव समूह और आंदोलन का प्रभाव:

जन समर्थन: दबाव समूह और उनके आंदोलन अपने लक्ष्य और क्रियाकलापों के लिये जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं। इसके लिये वे तरह तरह के रास्ते अपनाते हैं, जैसे कि जागरूकता अभियान, जनसभा, पेटीशन, आदि। कई दबाव समूह जनता का ध्यान खींचने के लिए मीडिया को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
प्रदर्शन: प्रदर्शन करना किसी भी दबाव समूह का एक आम तरीका है। प्रदर्शन के दौरान हड़ताल भी किये जाते हैं ताकि सरकार के काम में बाधा उत्पन्न की जा सके। हड़ताल और बंद के द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जाता है ताकि सरकार किसी मांग की सुनवाई करे।
लॉबी करना: कुछ दबाव समूह सरकारी तंत्र में लॉबी भी करते हैं। इसके लिये अक्सर प्रोफेशनल लॉबिस्ट की सेवा ली जाती है। कई बार इश्तहार भी चलाये जाते हैं। इन समूहों में से कुछ लोग आधिकारिक निकायों और कमेटियों में भी भाग लेते हैं ताकि सरकार को सलाह दे सकें। इस तरह के समूह के उदाहरण हैं: एसोचैम और नैसकॉम।

राजनैतिक पार्टियों पर प्रभाव

दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है। हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।
भारत के अधिकांश ट्रेड यूनियन और स्टूडेंट यूनियन किसी न किसी मुख्य पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। इस तरह के समूहों के कार्यकर्ता सामान्यतया किसी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता भी होते हैं।

कई बार किसी जन आंदोलन से राजनैतिक पार्टी का भी जन्म होता है। इसके कई उदाहरण हैं; जैसे असम गण परिषद, डीएमके, एआईडीएमके, आम आदमी पार्टी, आदि। असम गण परिषद का जन्म असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चलने वाले छात्र आंदोलन के कारण 1980 के दशक में हुआ था। डीएमके और एआईडीएमके का जन्म तामिलनाडु में 1930 और 1940 के दशक में चलने वाले समाज सुधार आंदोलन के कारण हुआ था। आम आदमी पार्टी का जन्म सूचना के अधिकार और लोकपाल की मांग के आंदोलन के कारण हुआ था।
अधिकांश मामलों में दबाव समूह और किसी राजनैतिक पार्टी के बीच का रिश्ता उतना प्रत्यक्ष नहीं होता है। अक्सर यह देखा जाता है कि दोनों एक दूसरे के विरोध में ही खड़े होते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ भी दबाव समूहों द्वारा उठाये जाने वाले अधिकांश मुद्दों को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। कई बड़े राजनेता किसी दबाव समूह से ही निकलकर आये हैं।

दबाव समूह के प्रभाव का मूल्यांकन

कई लोग दबाव समूहों के खिलाफ तर्क देते हैं। कई विचारक ऐसा मानते हैं कि दबाव समूह को सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे समूह समाज के एक छोटे से वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र किसी छोटे वर्ग के संकीर्ण हितों के लिये काम नहीं करता बल्कि पूरे समाज के हितों के लिये काम करता है। राजनैतिक पार्टी को तो जनता को जवाब देना होता है लेकिन दबाव समूह पर यह बात लागू नहीं होती है। इसलिए कुछ विचारकों का मानना है कि दबाव समूह की सोच का दायरा बड़ा नहीं हो सकता है। कई बार कोई बिजनेस लॉबी या अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी भी कुछ दबाव समूहों को हवा देती रहती हैं। इसलिए दबाव समूह की बात को नाप तौलकर ही सुनना चाहिए।
कई लोग दबाव समूह का समर्थन करते हैं। कुछ विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र की जड़ें जमाने के लिये सरकार पार दबाव डालना उचित होता है। ऐसा माना जाता है कि राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता हथियाने के चक्कर में अक्सर जनता के असली मुद्दों की अवहेलना करती हैं। उनको नींद से जगाने का काम दबाव समूह का ही होता है।
ऐसा कहा जा सकता है कि दबाव समूह विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं में संतुलन का काम करते हैं और सामान्यतया लोगों की असली समस्याओं को उजागर करते हैं।



NCERT Solution

प्रश्न 1:दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर: दबाव समूह और आंदोलन निम्न तरीकों से राजनीति को प्रभावित करते हैं:
  • अपने मुद्दे के लिए जन समर्थन जुटाकर।
  • विरोध प्रदर्शन द्वारा सरकार पर दबाव बनाकर।
  • लॉबी बनाकर।
प्रश्न 2:दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन करें।
उत्तर: सामान्यतया दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के बीच कोई प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता है। वे अक्सर एक दूसरे के विपरीत मान्यता रखते हैं। लेकिन दोनों के बीच संवाद और मोलभाव चलता रहता है। राजनीतिक दलों के कई नए नेता दबाव समूहों से आते हैं।
प्रश्न 3:दबाव समूहों कि गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर: दबाव समूहों की गतिविधियों से लोकतंत्र की जड़े मजबूत करने में मदद मिलती है। ऐसे समूह शक्तिशाली बिजनेस लॉबी के खिलाफ आम जनता की आवाज बुलंद करने में मदद करते हैं। कई बार दबाव समूहों का क्रियाकलाप विध्वंसकारी लगता है लेकिन इन क्रियाकलापों से शक्तिशाली शासक वर्ग और व्यवसायी वर्ग तथा शक्तिहीन आम नागरिक के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है।
प्रश्न 4:दबाव समूह क्या हैं? कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर: वैसे संगठन जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं उन्हें हम दबाव समूह कहते हैं। एक दबाव समूह किसी राजनीतिक दल से भिन्न होता है क्योंकि यह जनता के लिए जवाबदेह नहीं होता। दबाव समूह की शासन में कोई भागीदारी नहीं होती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन, ट्रेड यूनियन, वकीलों का संगठन, आदि दबाव समूह के उदाहरण हैं।

प्रश्न 5:दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
उत्तर: राजनीतिक दल सीधे रूप से जनता के लिए जवाबदेह होते हैं जबकि दबाव समूह के साथ ऐसा नहीं है। एक राजनीतिक दल या तो सत्ता में होता है या सत्ता हासिल करने के लिए काम करता है, लेकिन दबाव समूह के साथ ऐसा नहीं है।
प्रश्न 6:जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें ..................कहा जाता है।
उत्तर: वर्ग विशेष के हित समूह
प्रश्न 7:निम्नलिखित में से किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव समूह और राजनीतिक दल में अंतर होता है:
  • राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते।
  • दबाव समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला होता है।
  • दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
  • दबाव समूह लोगों की लामबंदी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल करते हैं।
उत्तर: दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
प्रश्न 8: सूची 1 का सूची 2 से मिलान कीजिए।
सूची 1सूची 2
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठनa) आंदोलन
2. जन सामान्य के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठनb) राजनीतिक दल
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी सकती है और नहीं भी।c) वर्ग विशेष के हित समूह
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने की गरज से लोगों को लामबंद करता है।d) लोक कल्याणकारी हित समूह
उत्तर: 1 c, 2 d, 3 a, 4 b

प्रश्न 9:सूची 1 और सूची 2 का मिलान कीजिए।
सूची 1सूची 2
1. दबाव समूहa) नर्मदा बचाओ आंदोलन
2. लंबी अवधि का आंदोलनb) असम गण परिषद
3. एक मुद्दे पर आधारित आंदोलनc) महिला आंदोलन
4. राजनीतिक दलd) खाद विक्रेताओं का संघ
उत्तर: 1 d, 2 c, 3 a, 4 b
प्रश्न 10:दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि इनमे से कौन सही हैं।
  • दबाव समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
  • दबाव समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई न कोई पक्ष लेते हैं।
  • सभी दबाव समूह राजनीतिक दल होते हैं।
उत्तर: a और b
प्रश्न 11:मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगग्र अलग जिला बना दिया जाय तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। लेकिन राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल ऑर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की माँग उठाई। बाद में सन 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन 2005 की जुलाई में बना।
इस उदाहरण में आपको आंदोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो?
उत्तर: इस उदाहरण में आंदोलन के द्वारा राजनीतिक दलों और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की गई है। आंदोलन के परिणामस्वरूप राजनीतिक दल एक विशेष माँग को मानने का वादा करते हैं। सरकार के गठन के बाद उस माँग को मान लिया जाता है। यह उदाहरण यह दिखाता है कि आंदोलन के द्वारा सरकार से अपने पक्ष में निर्णय लिया जा सकता है लेकिन उसे मूर्तरूप देने के लिए राजनीतिक दल के समर्थन की जरूरत पड़ती है।



Extra Question Answers

प्रश्न 1:राजनैतिक पार्टी से क्या समझते हैं?
उत्तर: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें राजनैतिक पार्टी कहते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं ताकि सरकार बना सकें।
प्रश्न 2:दबाव समूह की परिभाषा बतायें।
उत्तर: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में परोक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें दबाव समूह कहते हैं। सरकार बनाना या सरकार चलाना कभी भी दबाव समूह का लक्ष्य नहीं होता है।
प्रश्न 3:दबाव समूह का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर: दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, रुचि, महात्वाकांछा या मतों वाले लोग किसी समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक मंच पर आते हैं।
प्रश्न 4:जन आंदोलन के कुछ उदाहरण लिखिए।

उत्तर: नर्मदा बचाओ आंदोलन, सूचना के अधिकार के लिये आंदोलन, शराबबंदी के लिये आंदोलन, नारी आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन।
प्रश्न 5:वर्ग विशेष के हित समूह पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: जो दबाव समूह किसी खास वर्ग या समूह के हितों के लिये काम करते हैं उन्हें वर्ग विशेष के समूह कहते हैं। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, बिजनेस एसोसियेशन, प्रोफेशनल (वकील, डॉक्टर, शिक्षक, आदि) के एसोसियेशन। ऐसे समूह किसी खास वर्ग की बात करते हैं; जैसे मजदूर, शिक्षक, कामगार, व्यवसायी, उद्योगपति, किसी धर्म के अनुयायी, आदि। ऐसे समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना।
प्रश्न 6:जन सामान्य के हित समूह पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: जो दबाव समूह सर्व सामान्य जन के हितों की रक्षा करते हैं उन्हें जन सामान्य के हित समूह कहते हैं। ऐसे दबाव समूह का उद्देश्य होता है पूरे समाज के हितों की रक्षा करना। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, स्टूडेंट यूनियन, एक्स आर्मीमेन एसोसियेशन, आदि।
प्रश्न 7:दबाव समूह अपने लिये जन समर्थन जुटाने के लिये क्या-क्या करते हैं?
उत्तर: इसके लिये वे तरह तरह के रास्ते अपनाते हैं, जैसे कि जागरूकता अभियान, जनसभा, पेटीशन, आदि। कई दबाव समूह जनता का ध्यान खींचने के लिए मीडिया को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 8:दबाव समूह का राजनैतिक पार्टियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है। हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।
प्रश्न 9:दबाव समूह के समर्थन में कुछ तर्क लिखिए।
उत्तर: कुछ विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र की जड़ें जमाने के लिये सरकार पार दबाव डालना उचित होता है। ऐसा माना जाता है कि राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता हथियाने के चक्कर में अक्सर जनता के असली मुद्दों की अवहेलना करती हैं। उनको नींद से जगाने का काम दबाव समूह का ही होता है।
प्रश्न 10:दबाव समूह के विरोध में तर्क लिखिए।
उत्तर: कई विचारक ऐसा मानते हैं कि दबाव समूह को सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे समूह समाज के एक छोटे से वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र किसी छोटे वर्ग के संकीर्ण हितों के लिये काम नहीं करता बल्कि पूरे समाज के हितों के लिये काम करता है। राजनैतिक पार्टी को तो जनता को जवाब देना होता है लेकिन दबाव समूह पर यह बात लागू नहीं होती है। इसलिए कुछ विचारकों का मानना है कि दबाव समूह की सोच का दायरा बड़ा नहीं हो सकता है।
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नागरिक शास्त्र-chapter-4.जाति, धर्म और लैंगिक मसले

4.जाति, धर्म और लैंगिक मसले

श्रम का लैंगिक विभाजन

श्रम का लैंगिक विभाजन एक कटु सत्य है जो हमारे घरों और समाज में प्रत्यक्ष दिखाई देता है। घर के कामकाज महिलाओं द्वारा किये जाते हैं या महिलाओं की देखरेख में नौकरों द्वारा किये जाते हैं। पुरुषों द्वारा बाहर के काम काज किये जाते हैं। एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चारदीवारी में समेट कर रखा जाता है।

नारीवादी आंदोलन:

महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
हाल के वर्षों में लैंगिक मसलों को लेकर राजनैतिक गतिविधियों के कारण सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की स्थिति काफी सुधर गई है। भारत का समाज एक पितृ प्रधान समाज है। इसके बावजूद आज महिलाएँ कई क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।
महिलाओं को अभी भी कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं:
पुरुषों में 76% के मुकाबले महिलाओं में साक्षरता दर केवल 54% है।
ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।
आज भी अधिकाँश परिवारों में लड़कियों के मुकाबले लड़कों को अधिक प्रश्रय दिया जाता है। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिसमें कन्या को भ्रूण अवस्था में ही मार दिया जाता है। भारत का लिंग अनुपात महिलाओं के पक्ष में दूर दूर तक नहीं है।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के कई मामले सामने आते हैं और ये घटनाएँ घर में और घर के बाहर भी होती हैं।

महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व
राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।
स्थानीय स्वशासी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए ऐसे निकायों की एक तिहाई सीटों को महिलाओं के लिये आरक्षित किया गया है। लेकिन संसद में महिलाओं के लिये आरक्षण का बिल लंबे समय से लंबित है।

धर्म और राजनीति:

धर्म हमारे राजनीतिक और सामाजिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। कुछ देशों में बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय को बढ़ावा दिया जाता है जिससे अल्पसंख्यक समुदाय का भारी नुकसान होता है। इससे बहुसंख्यक आतंक को पोषण मिलता है।

सांप्रदायिकता:

जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।

राजनीति में सांप्रदायिकता के कई रूप हो सकते हैं:

कुछ लोगों को लगता है कि उनका धर्म अन्य धर्मों से बेहतर है। ऐसे लोग अक्सर दूसरे धर्म के लोगों पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश करते हैं और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। इसके फलस्वरूप अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है।
संप्रदाय के नाम पर समाज में ध्रुवीकरण की अक्सर कोशिश की जाती है। किसी अल्पसंख्यक समुदाय में भय भरने के लिये धार्मिक चिह्नों, धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपीलों का इस्तेमाल किया जाता है।
कई बार सांप्रदायिकता उग्र रूप ले लेती है और फिर सांप्रदायिक दंगे और नरसंहार होते हैं।

धर्मनिरपेक्ष शासन

जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
भारत के संविधान में यह घोषित किया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारे संविधान के अनुसार भारत में कोई भी धर्म राजकीय धर्म नहीं माना गया है।
भारत में लोगों को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को मानने की छूट देता है। संविधान धर्म के नाम पर भेदभाव की मनाही करता है।
लेकिन भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।

जाति और राजनीति

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अनूठी खासियत है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती है। जाति व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति का एक तय पेशा होता है। उस पेशे का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता है। अक्सर किसी भी जाति के लोगों में अपने समुदाय या जाति विशेसः के प्रति गहरा लगाव होता है। कुछ जातियों को ऊँची जाति माना जाता है तो कुछ को नीची जाति।

जाति पर आधारित पूर्वाग्रह:

हमारे समाज में जाति पर आधारिक कई पूर्वाग्रह हैं। अभी भी ग्रामीण परिवेश में नीची जाति के लोगों को ऊँची जाति के लोगों के सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। ऊँची जाति के कई लोग तो दलितों की परछाई से भी दूर रहते हैं।
लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
अभी भी जब शादी करने की बात आती है तो जाति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। लेकिन जीवन के अन्य संदर्भ में भारत में जाति का प्रभाव खत्म होता जा रहा है।
सदियों से उँची जाति के लोगों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिले इसलिये उन्होंने आर्थिक रूप से अधिक तरक्की की। पिछड़ी जाति के लोग अभी भी सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में पीछे चल रहे हैं।

राजनीति में जाति

भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
हर जाति के लोग राजनैतिक सत्ता में अपना हक लेने के लिये अपनी जातिगत पहचान को अलग अलग तरीकों से व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।
चूँकि जातियों की बहुत बड़ी संख्या है इसलिये कई जातियों ने मिलकर अपना एक खास गठबंधन बना लिया है ताकि राजनैतिक मोलभाव में उन्हें बढ़त मिल सके।
जाति समूहों को मुख्य रूप से ‘अगड़े’ और ‘पिछड़े’ वर्गों में बाँटा जा सकता है।
लेकिन जातिगत विभाजन से अकसर समाज में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और हिंसा भी हो सकती है।

जातिगत असामनता

जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों की जनसंख्या का प्रतिशत
जातिग्रामीणशहरी
अनुसूचित जनजाति45.8%35.6%
अनुसूचित जाति35.9%38.3%
अन्य पिछड़ी जातियाँ27%29.3%
मुस्लिम अगली जातियाँ26.8%34.2%
हिंदू अगली जातियाँ11.7%9.9%
ईसाई अगली जातियाँ9.6%5.4%
सिख अगली जातियाँ0%4.9%
अन्य अगली जातियाँ16%2.7%
REF: NSSO 55th round 1999 - 2000


NCERT Solution

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1:निम्नलिखित में से कौन सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
  • स्थानांतरी कृषि
  • बागवानी
  • रोपन कृषि
  • गहन कृषि
उत्तर: बागवानी
प्रश्न 2:इनमें से कौन सी रबी फसल है?
  • चावल
  • चना
  • मोटे अनाज
  • कपास
उत्तर: चना
प्रश्न 3:इनमें से कौन सी एक फलीदार फसल है?
  • दालें
  • ज्वार तिल
  • मोटे अनाज
  • तिल
उत्तर: दालें
प्रश्न 4:सरकार निम्नलिखित में से कौन सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती है?
  • अधिकतम सहायता मूल्य
  • मध्यम सहायता मूल्य
  • न्यूनतम सहायता मूल्य
  • प्रभावी सहायता मूल्य
उत्तर: न्यूनतम सहायता मूल्य

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1:एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का विवरण दें।
उत्तर: चाय एक पेय फसल है। चाय की पैदावार उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में अच्छी होती है और इसके लिए गहरी मिट्टी और सुगम जल निकास वाले ढ़लुवा क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। चाय के उत्पादन में गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2:भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दें।
>उत्तर: गेहूँ एक खाद्य फसल है। पश्चिम उत्तर के गंगा सतलज के मैदान और दक्कन के काली मृदा वाले क्षेत्र भारत के मुख्य गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं। गेहूँ के मुख्य उत्पादक हैं पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग।
प्रश्न 3:सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।
उत्तर: सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
हरित क्रांति
श्वेत क्रांति
भूमि सुधार
प्रश्न 4:4. दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?
उत्तर: दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम होने से खाद्यान्न की कमी हो जाएगी। भोजन एक मूलभूत आवश्यकता है जिसके बिना हमारी उत्तरजीविता संकट में पड़ जाएगी। भोजन की कमी से समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1:कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
उत्तर: कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
  • पूरे देश में भूमि सुधार करना चाहिए।
  • वैज्ञानिकों को अधिक यील्ड वाले बीज विकसित करने चाहिए।
  • नहरों, सड़कों और कोल्ड स्टोरेज को अच्छी तरह से विकसित करना चाहिए।
  • मोबाइल फोन के जरिए किसानों तक समय रहते मौसम की जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए।
प्रश्न 2:भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: वर्तमान में पश्चिमी देशों के किसानों को अत्यधिक सहायिकी मिलने के कारण भारत के किसान उनसे प्रतिस्पर्धा करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत के कृषि उत्पाद की मांग बहुत कम है। साथ में रासायनिक उर्वरक और सिंचाई के अत्यधिक इस्तेमाल ने नई समस्याएँ खड़ी कर दी है जिससे कृषि उत्पाद घट रहा है। भारत में कृषि पर बहुत अधिक लोग निर्भर हैं इसलिए प्रति व्यक्ति कृषि उत्पाद और भी कम होने वाली है। कई विशेषज्ञों की राय में कार्बनिक कृषि से इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।
प्रश्न 3:चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर: धान की खेती के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक), अधिक आर्द्रता और 100 सेमी से अधिक की सालाना वर्षा की जरूरत होती है। लेकिन कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसे सिंचाई की समुचित व्यवस्था करके उगाया जा सकता है। चावल की खेती उत्तर के मैदानों, पूर्वोत्तर भारत, तटीय इलाकों और डेल्टा के क्षेत्रों में होती है। जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में चावल की पैदावार अच्छी होती है। लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था विकसित करने से चावल की खेती अन्य भागों में भी संभव है।

Extra Questions Answers

प्रश्न 1:श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब ऐसा माना जाता है कि कुछ कार्य महिलाओं के लिये और कुछ पुरुषों के लिये ही बने हैं तो ऐसी स्थिति को श्रम का लैंगिक विभाजन कहते हैं।
प्रश्न 2:नारीवादी आंदोलन का क्या मतलब है?
उत्तर: महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
प्रश्न 3:आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर: आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।
प्रश्न 4:भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसा है?
उत्तर: भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।

प्रश्न 5:सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।
प्रश्न 6:धर्मनिरपेक्ष शासन का क्या मतलब है?
उत्तर: जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
प्रश्न 7:भारत सरकार किस स्थिति में धार्मिक मुद्दों में हस्तक्षेप करती है?
उत्तर: भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।

प्रश्न 8:जातिगत विभाजन किन कारणों से कम होते जा रहे हैं?
उत्तर: कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
प्रश्न 9:भारत की राजनीति में जाति का क्या महत्व है?
उत्तर: भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
प्रश्न 10:जाति के आधार पर आर्थिक विषमता पर टिप्पणी करें।
उत्तर: जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
☆END☆