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Geography

Tuesday, June 11, 2019

भूगोल-chapter-2.वन एवं वन्य जीव संसाधन

2.वन एवं वन्य जीव संसाधन

जैव विविधता: किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं और पादपों की विविधता को उस क्षेत्र की जैव विविधता कहते हैं।

भारत के वनस्पतिजात और प्राणिजात

जैव विविधता के मामले में भारत एक संपन्न देश है। विश्व की लगभग 16 लाख प्रजातियों में से लगभग 8% प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं।
लुप्तप्राय प्रजातियाँ जो नाजुक अवस्था में हैं: चीता, गुलाबी सिर वाली बतख, पहाड़ी कोयल, जंगली चित्तीदार उल्लू, महुआ की जंगली किस्म, हुबर्डिया हेप्टान्यूरॉन (घास की एक प्रजाति), आदि।
लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या: 79 स्तनधारी, 44 पक्षी, 15 सरीसृप, 3 उभयचर, और 1,500 पादप प्रजातियाँ।

भारत के वनस्पतिजात और प्राणिजात
प्राणिजात81,000 से अधिक प्रजातियाँ
वनस्पतिजात47,000 से अधिक प्रजातियाँ
पुष्पी पादपों की स्थानीय प्रजातियाँ15,000
पादपजात जिनपर लुप्त होने का खतरा हैलगभग 10%
स्तनधारी जिनपर लुप्त होने का खतरा हैलगभग 20%

अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार प्रजातियों का वर्गीकरण:

सामान्य प्रजातियाँ: जिस प्रजाति की जनसंख्या जीवित रहने के लिये सामान्य हो तो उस प्रजाति को सामान्य प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: मवेशी, साल, चीड़, कृन्तक, आदि।
संकटग्रस्त प्रजातियाँ: जो प्रजाति लुप्त होने के कगार पर हो उसे संकटग्रस्त प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, भारतीय गैंडा, शेर-पूँछ वाला बंदर, संगाई (मणिपुरी हिरण), आदि।
सुभेद्य (Vulnerable) प्रजातियाँ: जब किसी प्रजाति की जनसंख्या इतनी कम हो जाये कि उसके लुप्त होने की प्रबल संभावना हो जाये तो उसे सुभेद्य प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन, आदि।

दुर्लभ प्रजातियाँ: जब किसी प्रजाति की संख्या इतनी कम हो जाये कि उसके संकटग्रस्त या सुभेद्य होने का खतरा उत्पन्न हो तो उसे दुर्लभ प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: हिमालय के भूरे भालू, एशियाई भैंस, रेगिस्तानी लोमड़ी, हॉर्नबिल, आदि।
स्थानीय प्रजातियाँ: कुछ प्रजाति केवल किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में पाई जाती है। ऐसी प्रजाति को उस क्षेत्र की स्थानीय प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: अंदमान टील, निकोबार के कबूतर, अंदमान के जंगली सूअर, अरुणाचल प्रदेश के मिथुन, आदि।
लुप्त प्रजातियाँ: वह प्रजाति जो अब नहीं पाई जाती है; लुप्त प्रजाति कहलाती है। कोई कोई प्रजाति किसी खास स्थान, क्षेत्र, देश, महादेश या पूरी धरती से विलुप्त हो जाती है। उदाहरण: एशियाई चीता, गुलाबी सिरवाली बतख, आदि।

सिमटते जंगल

वन क्षेत्र637,293 वर्ग किमी (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.39%)
घने वन11.48%
खुले वन7.76%
मैन्ग्रोव0.15%

वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण:

कृषि में विस्तार: भारतीय वन सर्वेक्षण के आँकड़े के अनुसार 1951 से 1980 के बीच 262,000 वर्ग किमी से अधिक के वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदल दिया गया। इसके साथ ही आदिवासी क्षेत्रों के एक बड़े भूभाग को झूम खेती और पेड़ों की कटाई से नुकसान पहुँचा है।
संवर्धन वृक्षारोपण: जब व्यावसायिक महत्व के किसी एक प्रजाति के पादपों का वृक्षारोपण किया जाता है तो इसे संवर्धन वृक्षारोपण कहते हैं। भारत के कई भागों में संवर्धन वृक्षारोपण किया गया ताकि कुछ चुनिंदा प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा सके। इससे अन्य प्रजातियों का उन्मूलन हो गया।

विकास परियोजनाएँ: आजादी के बाद से बड़े पैमाने वाली कई विकास परियोजनाओं को मूर्तरूप दिया गया। इससे जंगलों को भारी क्षति का सामना करना पड़ा। 1951 से आजतक नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किमी से अधिक वनों का सफाया हो चुका है।
खनन: खनन से कई क्षेत्रों में जैविक विविधता को भारी नुकसान पहुँचा है। उदाहरण: पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन।
संसाधनों का असमान बँटवारा: अमीर और गरीबों के बीच संसाधनों का असमान बँटवारा होता है। इससे अमीर लोग संसाधनों का दोहन करते हैं और पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।

कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव:

संसाधनों के कम होने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। कुछ चीजें इकट्ठा करने के लिये महिलाओं पर अधिक बोझ होता है; जैसे ईंधन, चारा, पेयजल और अन्य मूलभूत चीजें। इन संसाधनों की कमी होने से महिलाओं को अधिक काम करना पड़ता है। कुछ गाँवों में पीने का पानी लाने के लिये महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है।
वनोन्मूलन से बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक विपदाएँ बढ़ जाती हैं जिससे गरीबों को काफी कष्ट होता है।
वनोन्मूलन से सांस्कृतिक विविधता में भी कमी आती है। कुछ लोग अपने पारंपरिक तौर तरीकों से जीवनयापन करने लिये वनों पर निर्भर रहते थे। ऐसे लोगों को वनोन्मूलन के कारण जीविका के नये साधनों की तलाश में निकलना पड़ता है। इस प्रक्रिया में उनकी जड़ें छूट जाती हैं और उन्हें अपने पारंपरिक आवास और संस्कृति को छोड़ने को विवश होना पड़ता है।

वन्यजीव संरक्षण

भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972:

1960 और 1970 के दशकों में पर्यावरण संरक्षकों ने वन्यजीवन की रक्षा के लिए नए कानून की माँग की थी। उनकी माँगों को मानते हुए सरकार ने भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 को लागू किया। इस अधिनियम के तहत संरक्षित प्रजातियों की एक अखिल भारतीय सूची तैयार की गई। बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के शिकार पर पाबंदी लगा दी गई। वन्यजीवन के व्यापार पर रोक लगाया गया। वन्यजीवन के आवास को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। कई राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों ने नेशनल पार्क और वन्यजीवन अभयारण्य बनाए। कुछ खास जानवरों की सुरक्षा के लिए कई प्रोजेक्ट शुरु किये गये, जैसे प्रोजेक्ट टाइगर।

संरक्षण के लाभ:

संरक्षण से कई लाभ होते हैं। इससे पारिस्थितिकी की विविधता को बचाया जा सकता है। इससे हमारे जीवन के लिये जरूरी मूलभूत चीजों (जल, हवा, मिट्टी) का संरक्षण भी होता है।

सरकार द्वारा वनों का वर्गीकरण:

आरक्षित वन: जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर पूरी तरह प्रतिबंध हो उसे आरक्षित वन कहते हैं। कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक को आरक्षित वन का दर्जा दिया गया है। संरक्षण की दृष्टि से इन्हें सबसे बहुमूल्य माना जाता है।
रक्षित वन: जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर प्रतिबंध हो लेकिन यह उस वन पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों पर लागू न हो तो ऐसे वन को रक्षित वन कहते हैं। कुल वन क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को रक्षित वन का दर्जा दिया गया है। रक्षित वनों को आगे होने वाले नुकसान से बचाया जाता है।
अवर्गीकृत वन: जो वन ऊपर की दो श्रेणी में नहीं आते हैं उन्हें अवर्गीकृत वन कहा जाता है।

संरक्षण नीति की नई परिपाटी

जैव विविधता को बढ़ाना: अब कुछ गिने चुने कारकों पर ध्यान देने की बजाय पूरी जैव विविधता पर ध्यान दिया जाता है। इसका असर यह हुआ है कि अब न केवल बड़े स्तनधारियों पर ध्यान दिया जाता है बल्कि कीटों पर भी ध्यान दिया जाने लगा है। 1980 और 1986 के वन्यजीवन अधिनियम के बाद नई अधिसूचनाएँ जारी की गईं। इन अधिसूचनाओं के अनुसार अब कई सौ तितलियों, मॉथ, बीटल और एक ड्रैगनफ्लाई को भी रक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया। 1991 में इस लिस्ट में पादप की छ: प्रजातियों को भी रखा गया है।

समुदाय और संरक्षण:

इस बात को अब कई स्थानीय समुदायों ने भी मान लिया है कि संरक्षण से उनके जीवनयापन को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए अब कुछ लोग कई जगहों पर सरकार के संरक्षण के प्रयासों के साथ भागीदारी कर रहे हैं।
राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में गाँव के लोगों ने खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।
कई गाँव के लोग तो अब वन्यजीवन के आवास की रक्षा करने के क्रम में सरकारी हस्तक्षेप की भी अनदेखी कर रहे हैं। इसका एक उदाहरण अलवर जिले में देखने को मिलता है। इस जिले के पाँच गाँवों ने 1,200 हेक्टेअर वन को भैरोदेव डाकव ‘सोनचुरी’ घोषित कर दिया है। वहाँ के लोगों ने वन्यजीवन की रक्षा के लिये अपने ही नियम और कानून बनाये हैं।

हिंदू धर्म और कई आदिवासी समुदायों में प्रकृति की पूजा की पुरानी परंपरा रही है। जंगलों में पवित्र पेड़ों के झुरमुट इसी परंपरा की गवाही देते हैं। वनों में ऐसे स्थानों को मानव गतिविधियों से अछूता रखा जाता है।
छोटानागपुर के मुण्डा और संथाल लोग महुआ और कदम्ब की पूजा करते हैं। इसी तरह उड़ीसा और बिहार के आदिवासी शादी के मौके पर इमली और आम की पूजा करते हैं।
बंदरों को हिंदुओं के देवता हनुमान का वंशज माना जाता है। अधिकाँश स्थानों पर इसी मान्यता के कारण बंदरों और लंगूरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाता है। राजस्थान के बिश्नोई गाँवों में चिंकारा, नीलगाय और मोर को पूरे समुदाय का संरक्षण मिलता है और कोई उनको नुकसान नहीं पहुँचाता है।
संरक्षण कार्य में समुदाय की भागीदारी का एक अच्छा उदाहरण है चिपको आंदोलन।
टेहरी और नवदन्य के बीज बचाओ आंदोलन जैसे संगठनों ने यह दिखा दिया है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध अनाजों की पैदावार करना आर्थिक रूप से संभव है।
स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षण में भागीदारी का एक और उदाहरण है ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट। यह कार्यक्रम उड़ीसा में 1988 से चल रहा है। इस कार्यक्रम के तहत गाँव के लोग अपनी संस्था का निर्माण करते हैं और संरक्षण संबंधी क्रियाकलापों पर काम करते हैं। उसके बदले में सरकार द्वारा उन्हें कुछ वन संसाधनों के इस्तेमाल का अधिकार मिल जाता है।

प्रोजेक्ट टाइगर

बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिये प्रोजेक्ट टाइगर को 1973 में शुरु किया गया था।
बीसवीं सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55,000 थी जो 1973 में घटकर 1,827 हो गई।
बाघ की आबादी के लिए खतरे: व्यापार के लिए शिकार, सिमटता आवास, भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की घटती संख्या, आदि।
प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता
वर्षबाघों की जनसंख्या
19854,002
19894,334
19933,600
वर्तमान स्थिति37,761 वर्ग किमी में फैले 27 टाइगर रिजर्व
महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व: कॉर्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखंड), सुंदरबन नेशनल पार्क (पश्चिम बंगाल), बांधवगढ़ नेशनल पार्क (मध्य प्रदेश), सरिस्का वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी (राजस्थान), मानस टाइगर रिजर्व (असम) और पेरियार टाइगर रिजर्व (केरल)।


NCERT Solution

बहुवैकल्पिक प्रश्न:

प्रश्न:1इनमें से कौन सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास का सही कारण नहीं है?
  • कृषि प्रसार
  • पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना
  • वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ
  • तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण
उत्तर: पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना
प्रश्न:2इनमें से कौन सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
  • संयुक्त वन प्रबंधन
  • बीज बचाओ आंदोलन
  • चिपको आंदोलन
  • वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन
उत्तर: वन्य जीव पशुविहार का परिसीमन
प्रश्न:3निम्नलिखित प्राणियों/पौधों का उनके अस्तित्व के वर्ग से मेल करें।
जनवर/पौधेअस्तित्व वर्ग
(1) काला हिरण(a)लुप्त
(2) एशियाई हाथी(b)दुर्लभ
(3) अंडमान जंगली सुअर(c) संकटग्रस्त
(4) हिमालयन भूरा भालू(d) सुभेद्य
(5) गुलाबी सिरवाली बतख(e)स्थानिक
उत्तर: 1 c, 2 d, 3 e, 4 b, 5 a

प्रश्न:4निम्नलिकित का मेल करें।
(1) आरक्षित वन(a)सरकार, व्यक्तियों के निजी और समुदायों के अधीन अन्य वन और बंजर भूमि
(2) रक्षित वन(b)वन और वन्य जीव संसाधन संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान वन
(3) अवर्गीकृत वन(c)वन भूमि जो और अधिक क्षरण से बचाई जा सकती है
उत्तर: 1 b, 2 c, 3 a

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न:11. जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं और पादपों की विविधता को उस क्षेत्र की जैव विविधता कहते हैं। जैव विविधता किसी भी पारितंत्र को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक होती है। स्वस्थ पारितंत्र के अभाव में मानव जीवन खतरे में पड़ सकता है। इसलिए जैव विविधता मानव जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
प्रश्न:2विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारक हैं?
उत्तर: मनुष्यों ने कृषि के प्रसार के लिए तेजी से जंगलों को कम किया है। इससे वनों का ह्रास हुआ है। संवर्धन वृक्षारोपण से एक ही तरह की प्रजाति को बढ़ावा दिया गया है जो पारितंत्र के लिए ठीक नहीं है। विकास परियोजनाओं के कारण भी वनों का ह्रास हुआ है। वनों के ह्रास होने से प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात की संख्या में भारी कमी आई है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए

प्रश्न:1भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है? विस्तारपूर्वक विवेचना करें।
उत्तर: कई स्थानीय समुदायों ने इस बात को जान लिया है कि संरक्षण से उनका जीवनयापन लंबे समय तक के लिए सुरक्षित रह सकता है। ऐसे समुदाय कई स्थानों पर सरकार के संरक्षण प्रयासों के साथ भागीदारी कर रहे हैं। भारत के विभिन्न समुदायों में वनों के संरक्षण में योगदान के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं।
राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में गाँव के लोगों ने खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।
अलवर जिले के पाँच गाँवों ने 1,200 हेक्टेअर वन को भैरोदेव डाकव ‘सोनचुरी’ घोषित कर दिया है।
हिंदू धर्म और कई आदिवासी समुदायों में प्रकृति की पूजा की पुरानी परंपरा रही है। जंगलों में पवित्र पेड़ों के झुरमुट इसी परंपरा के द्योतक हैं। वनों में ऐसे स्थानों को मानव गतिविधियों से अक्षुण्ण रखा जाता है।
राजस्थान के बिश्नोई गाँवों में चिंकारा, नीलगाय और मोर को पूरे समुदाय का संरक्षण मिलता है और कोई उनको नुकसान नहीं पहुँचाता है।
संरक्षण कार्य में समुदाय की भागीदारी का एक अच्छा उदाहरण है चिपको आंदोलन।
प्रश्न:2वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर: भारत में वन और वन्य जीव संरक्षण में रीति रिवाजों का बड़ा सहयोग रहा है। हिंदू धर्म और कई आदिवासी समुदायों में प्रकृति की पूजा की पुरानी परंपरा रही है। हिंदू धर्म में हनुमान की पूजा होती है जो प्राणिजात की महत्व को दर्शाता है। हमारे यहाँ कई रस्मों में पीपल और आम के पेड़ की पूजा की जाती है। इससे पता चलता है कि लोग सदा से वृक्षों को पवित्र मानते रहे हैं। इसका ये भी मतलब है कि प्राचीन काल से ही लोग हमारे जीवन के लिये पेड़ों के महत्व को समझते थे। आदिवासी लोग तो जंगलों में पवित्र पेड़ों के झुरमुट को मानव गतिविधियों से अनछुआ रखते हैं। गाँवों में अभी भी त्योहारों के अवसर पर पशुओं की पूजा की जाती है। ऐसी परंपरा पशुओं के महत्व को मानने और समझने को दिखाती है। राजस्थान का बिश्नोई समाज काले हिरण के संरक्षण के लिये किसी भी हद तक जा सकता है। शायद यही कारण है कि आज भी दूर दराज के गाँवों; खासकर जो वनों के निकट हैं; वनों को स्थानीय लोगों द्वारा भी संरक्षण मिलता है। इससे वन विभाग का काम भी आसान हो जाता है।

Extra Questions Answers

प्रश्न:1जैव विविधता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं और पादपों की विविधता को उस क्षेत्र की जैव विविधता कहते हैं।
प्रश्न:2सामान्य प्रजाति किसे कहते हैं?
उत्तर: जिस प्रजाति की जनसंख्या जीवित रहने के लिये सामान्य हो तो उस प्रजाति को सामान्य प्रजाति कहते हैं।
प्रश्न:3संकटग्रस्त प्रजाति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जो प्रजाति लुप्त होने के कगार पर हो उसे संकटग्रस्त प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, भारतीय गैंडा, शेर-पूँछ वाला बंदर, संगाई (मणिपुरी हिरण), आदि।
प्रश्न:4सुभेद्य प्रजाति का क्या मतलब है?
उत्तर: जब किसी प्रजाति की जनसंख्या इतनी कम हो जाये कि उसके लुप्त होने की प्रबल संभावना हो जाये तो उसे सुभेद्य प्रजाति कहते हैं। उदाहरण: नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डॉल्फिन, आदि।

प्रश्न:5संवर्धन वृक्षारोपण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब व्यावसायिक महत्व के किसी एक प्रजाति के पादपों का वृक्षारोपण किया जाता है तो इसे संवर्धन वृक्षारोपण कहते हैं।
प्रश्न:6संसाधनों के कम होने से समाज पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर: संसाधनों के कम होने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। कुछ चीजें इकट्ठा करने के लिये महिलाओं पर अधिक बोझ होता है; जैसे ईंधन, चारा, पेयजल और अन्य मूलभूत चीजें। इन संसाधनों की कमी होने से महिलाओं को अधिक काम करना पड़ता है। कुछ गाँवों में पीने का पानी लाने के लिये महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है।
प्रश्न:7भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: सरकार ने भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 को लागू किया। इस अधिनियम के तहत संरक्षित प्रजातियों की एक अखिल भारतीय सूची तैयार की गई। बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के शिकार पर पाबंदी लगा दी गई। वन्यजीवन के व्यापार पर रोक लगाया गया। वन्यजीवन के आवास को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। कई राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों ने नेशनल पार्क और वन्यजीवन अभयारण्य बनाए। कुछ खास जानवरों की सुरक्षा के लिए कई प्रोजेक्ट शुरु किये गये, जैसे प्रोजेक्ट टाइगर।

प्रश्न:8आरक्षित वन से क्या समझते हैं?
उत्तर: जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर पूरी तरह प्रतिबंध हो उसे आरक्षित वन कहते हैं।
प्रश्न:9रक्षित वन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर प्रतिबंध हो लेकिन उस वन पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होती हो ऐसे वन को रक्षित वन कहते हैं।
प्रश्न:10ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षण में भागीदारी का एक और उदाहरण है ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट। यह कार्यक्रम उड़ीसा में 1988 से चल रहा है। इस कार्यक्रम के तहत गाँव के लोग अपनी संस्था का निर्माण करते हैं और संरक्षण संबंधी क्रियाकलापों पर काम करते हैं। उसके बदले में सरकार द्वारा उन्हें कुछ वन संसाधनों के इस्तेमाल का अधिकार मिल जाता है।

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