2.संघवाद
शासन की वह व्यवस्था जिसमें किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उसे संघवाद कहते हैं। किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के दो स्तर होते हैं। एक स्तर पर पूरे देश के लिये एक सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य की सरकारें होती हैं। केंद्रीय सरकार राष्ट्रीय महत्व के कुछ चुनिंदा विषयों के लिए जिम्मेवार होती है। राज्य सरकार उस राज्य के रोजमर्रा के प्रशासन के लिए जिम्मेवार होती है। दोनों स्तर की सरकारें अपना शासन चलाने के मामले में एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं।
शासन की वह व्यवस्था जिसमें किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उसे संघवाद कहते हैं। किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के दो स्तर होते हैं। एक स्तर पर पूरे देश के लिये एक सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य की सरकारें होती हैं। केंद्रीय सरकार राष्ट्रीय महत्व के कुछ चुनिंदा विषयों के लिए जिम्मेवार होती है। राज्य सरकार उस राज्य के रोजमर्रा के प्रशासन के लिए जिम्मेवार होती है। दोनों स्तर की सरकारें अपना शासन चलाने के मामले में एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं।
भारतीय गणराज्य
हालांकि भारत के संविधान में ‘गणराज्य’ शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन भारतीय राष्ट्र का निर्माण संघीय व्यवस्था पर हुआ था।
भारत के संविधान में मूल रूप से दो स्तर के शासन तंत्र का प्रावधान रखा गया था। एक स्तर पर केंद्रीय सरकार होती है जो भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करती है। दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें होती हैं जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। बाद में इस व्यवस्था में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया, जो पंचायत और नगरपालिका के रूप में है।
हालांकि भारत के संविधान में ‘गणराज्य’ शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन भारतीय राष्ट्र का निर्माण संघीय व्यवस्था पर हुआ था।
भारत के संविधान में मूल रूप से दो स्तर के शासन तंत्र का प्रावधान रखा गया था। एक स्तर पर केंद्रीय सरकार होती है जो भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करती है। दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें होती हैं जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। बाद में इस व्यवस्था में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया, जो पंचायत और नगरपालिका के रूप में है।
संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण:
इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है। हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है।
संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है। हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है।
संविधान के मूलभूत प्रावधानों को बदलना सरकार के किसी भी स्तर द्वारा अकेले संभव नहीं होता है। यदि ऐसे किसी बदलाव की जरूरत होती है तो इसके लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता पड़ती है।
न्यायालय का यह अधिकार होता है कि वह संविधान का अर्थ निकाले और सरकार के विभिन्न स्तरों के कार्यों का व्याख्यान करे। जब कभी सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अधिकारों को लेकर कोई मतभेद होता है तो ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का काम किसी अम्पायर की तरह होता है।
सरकार के हर स्तर के लिए वित्त के स्रोत का स्पष्ट विवरण दिया गया है। इससे विभिन्न स्तर के सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।
संघीय ढ़ाँचे के दो उद्देश्य होते हैं। पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना। दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना।
किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं; पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति। ये दोनों पहलू संघीय व्यवस्था के गठन और कामकाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता की साझेदारी के नियमों पर सहमति होना जरूरी होता है। विभिन्न स्तरों में परस्पर यह विश्वास भी होना चाहिए के वे अपने अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्रों में दखलंदाजी नहीं करेंगे।
इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है। हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है।
संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है। हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है।
संविधान के मूलभूत प्रावधानों को बदलना सरकार के किसी भी स्तर द्वारा अकेले संभव नहीं होता है। यदि ऐसे किसी बदलाव की जरूरत होती है तो इसके लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता पड़ती है।
न्यायालय का यह अधिकार होता है कि वह संविधान का अर्थ निकाले और सरकार के विभिन्न स्तरों के कार्यों का व्याख्यान करे। जब कभी सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अधिकारों को लेकर कोई मतभेद होता है तो ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का काम किसी अम्पायर की तरह होता है।
सरकार के हर स्तर के लिए वित्त के स्रोत का स्पष्ट विवरण दिया गया है। इससे विभिन्न स्तर के सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।
संघीय ढ़ाँचे के दो उद्देश्य होते हैं। पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना। दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना।
किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं; पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति। ये दोनों पहलू संघीय व्यवस्था के गठन और कामकाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता की साझेदारी के नियमों पर सहमति होना जरूरी होता है। विभिन्न स्तरों में परस्पर यह विश्वास भी होना चाहिए के वे अपने अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्रों में दखलंदाजी नहीं करेंगे।
सत्ता का संतुलन
अलग अलग संघीय ढ़ाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं। यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था।
संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं:
सबको साथ लाकर संघ बनाना: इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत: एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया।
सबको जोड़कर संघ बनाना: इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो। उदाहरण के लिए; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं: भारत, स्पेन, बेल्जियम, आदि।
विषयों की लिस्ट:
यूनियन लिस्ट: इस लिस्ट में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं। कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। यूनियन लिस्ट के कुछ विषय हैं; देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
स्टेट लिस्ट: जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें स्टेट लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
साझा लिस्ट: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं, इस लिस्ट में आते हैं। साझा लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
बची हुई लिस्ट: वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है।
विशेष दर्जा: जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। इस राज्य का अपना अलग संविधान है। भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले। यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है। कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है।
केंद्र शासित प्रदेश: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, आदि।
भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है। इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है। अकेले संसद द्वारा यह संभव नहीं है। इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा। उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी।
भारत की संघीय व्यवस्था
भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण
भाषायी राज्य: भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इसके अलावा यहाँ भौगोलिक, जातीय, सांस्कृतिक, आदि विविधताएँ भी हैं। कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें। उदाहरण; तामिल नाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आदि। कुछ राज्यों का गठन भूगोल, जातीयता, संस्कृति आदि के आधार पर हुआ। उदाहरण; नागालैंड, उत्तराखंड, झारखंड, आदि।
भाषा नीति: भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है। लेकिन हिंदी केवल 40% लोगों की मातृभाषा है। इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है। इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये। हिंदी के अलावा, 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
केंद्र और राज्य के रिश्ते: केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है।
प्रश्न 1: भारत की संघीय व्यवस्था में बेल्जियम से मिलती जुलती एक विशेषता और उससे अलग एक विशेषता को बताएँ।
कांग्रेस की मोनोपॉली के समय:
आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी। यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था। उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी। छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था।
गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति:
1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ। उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ। इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी। इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला।
भारत में भाषायी विविधता:
1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग-अलग भाषाएँ हैं। इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है। उदाहरण के लिये भोजपुरी, मगधी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है। विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं। इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है। अन्य भाषाओं को अ-अनुसूचित भाषा कहा जाता है। इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है।
भारत में विकेंद्रीकरण:
भारत एक विशाल देश है, जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है। भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है। इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली, खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है।
कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है। स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है। इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई।
1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके। स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है।
इन निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं।
सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है।
पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र ‘राज्य चुनाव आयोग’ का गठन किया गया है।
पंचायती राज:
राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा। यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकता है। ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं।
हर गाँव (कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह) में एक ग्राम पंचायत होती है। यह कई वार्ड सदस्य (पंच) का एक समूह होता है। पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं।
पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है।
स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है।
पंचायत समिति: कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है। इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
जिला परिषद: एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं। जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं। उस जिले के लोक सभा के सदस्य, विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं। जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है।
नगरपालिका: इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है। शहरों में नगरपालिका का गठन होता है। बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है। इनके सदस्य (वार्ड काउंसिलर) लोगों द्वारा चुने जाते हैं। फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं। म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है।
NCERT Solution
उत्तर: बेल्जियम से मिलती जुलती विशेषता: सबको जोड़कर संघ बनाना।
बेल्जियम से अलग विशेषता: भारतीय संघ में राज्यों को कम स्वायत्तता मिली हुई है।
प्रश्न 2: शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या मुख्य अंतर है? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।
उत्तर: शासन के एकात्मक स्वरूप में केंद्र सरकार बहुत शक्तिशाली होती है और शासन के निचले स्तरों को सही मायने में शक्ति नहीं मिलती। इस तरह के उदाहरण कई तानाशाही शासनों और राजतंत्रों में देखे जा सकते हैं; जैसे लीबिया, सउदी अरब, आदि।
प्रश्न 3: 1992 के संविधान संशोधन के पहले और बाद के स्थानीय शासन के दो महत्वपूर्ण अंतरों को बताएँ।
उत्तर: 1992 के संविधान संशोधन के पहले स्थानीय शासन निकायों के पास संवैधानिक शक्ति नहीं होती थी। उस समय स्थानीय निकायों के चुनाव भी नियमित रूप से नहीं हो पाते थे। लेकिन 1992 के संशोधन के बाद चीजें बदल गई हैं।
प्रश्न 4: रिक्त स्थानों को भरें:
चूँकि अमरीका ............तरह का संघ है इसलिए वहाँ सभी इकाइयों को समान अधिकार है। संघीय सरकार के मुकाबले प्रांत ...........हैं। लेकिन भारत की संघीय प्रणाली .............की है और यहाँ कुछ राज्यों को औरों से ज्यादा शक्तियाँ प्राप्त हैं।
उत्तर: चूँकि अमरीका सबको साथ लाने वाले तरह का संघ है इसलिए वहाँ सभी इकाइयों को समान अधिकार है। संघीय सरकार के मुकाबले प्रांत अधिक शक्तिशाली हैं। लेकिन भारत की संघीय प्रणाली सबको जोड़ने की है और यहाँ कुछ राज्यों को औरों से ज्यादा शक्तियाँ प्राप्त हैं।
प्रश्न 5: भारत की भाषा नीति पर नीचे तीन प्रतिक्रियाएँ दी गई हैं। इनमें से आप जिसे ठीक समझते हैं उसके पक्ष में तर्क और उदाहरण दें।
संगीता: प्रमुख भाषाओं को समाहित करने की नीति ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया है।
अरमान: भाषा के आधार पर राज्यों के गठन ने हमें बाँट दिया है। हम इसी कारण अपनी भाषा के प्रति सचेत हो गए हैं।
हरीश: इस नीति ने अन्य भाषाओं के ऊपर अँगरेजी के प्रभुत्व को मजबूत करने भर का काम किया है।
उत्तर: संगीता का तर्क सबसे सही लगता है। भाषा का इस्तेमाल केवल एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिये ही नहीं होता बल्कि भाषा उस संस्कृति और सभ्यता का अहम हिस्सा होती है जिसे विकसित होने में हजारों साल लगते हैं। लोगों का अपनी भाषा के साथ भावनात्मक जुड़ाव होता है। भारत की भाषा नीति लोगों में दूसरों की संस्कृति के लिए सम्मान जगाने की कोशिश है और इससे भारत की एकता को मजबूत करने में मदद मिली है।
प्रश्न 6: संघीय सरकार की एक विशिष्टता है:
- राष्ट्रीय सरकार अपने कुछ अधिकार प्रांतीय सरकारों को देती है।
- अधिकार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बँट जाते हैं।
- निर्वाचित पदाधिकारी ही सरकार में सर्वोच्च ताकत का उपयोग करते हैं।
- सरकार की शक्ति शासन के विभिन्न स्तरों के बीच बँट जाती है।
उत्तर: सरकार की शक्ति शासन के विभिन्न स्तरों के बीच बँट जाती है।
प्रश्न 7: भारतीय संविधान की विभिन्न सूचियों में दर्ज कुछ विषय यहाँ दिए गये हैं। इन्हें नीचे दी गई तालिका में संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची वाले समूहों में लिखें: रक्षा, पुलिस, कृषि, शिक्षा, बैंकिंग, वन, संचार, व्यापार, विवाह।
उत्तर:
1 | 2 |
---|---|
1.संघीय सूची | रक्षा, बैंकिंग, संचार, विवाह |
2.राज्य सूची | कृषि, पुलिस |
3.समवर्ती सूची | शिक्षा, वन, व्यापार |
प्रश्न 8: नीचे भारत में शासन के विभिन्न स्तरों और उनके कानून बनाने के अधिकार क्षेत्र के जोड़े दिए गये हैं। इनमें से कौन सा जोड़ा सही मेल वाला नहीं है?
1 | 2 |
---|---|
a) राज्य सरकार | राज्य सूची |
b) केंद्र सरकार | संघीय सूची |
c) केंद्र और राज्य सरकार | समवर्ती सूची |
d) स्थानीय सरकार | अवशिष्ट अधिकार |
उत्तर: स्थानीय सरकार → अवशिष्ट अधिकार
प्रश्न 9:सुमेलित कीजिए:
सूची 1 | सूची 2 |
---|---|
1. भारतीय संघ | a) प्रधानमंत्री |
2. राज्य | b) सरपंच |
3. नगर निगम | c) राज्यपाल |
4. ग्राम पंचायत | d) मेयर |
उत्तर: 1- a, 2- c, 3- d, 4 - b
प्रश्न 10:नीचे दिये गये कथनों में से सही और गलत बताएँ:
- संघीय व्यवस्था में संघ और प्रांतीय सरकारों के अधिकार स्पष्ट रूप से तय होते हैं।
- भारत एक संघ है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से दर्ज हैं और अपने-अपने विषयों पर उनका स्पष्ट अधिकार है।
- श्रीलंका में संघीय व्यवस्था है क्योंकि उसे प्रांतों में बाँट दिया गया है।
- भारत में संघीय व्यवस्था नहीं रही क्योंकि राज्यों कुछ अधिकार स्थानीय शासन की इकाइयों में बाँट दिये गये हैं।
उत्तर: a - सही, b - सही, c - सही, d - गलत
Extra Question Answer
प्रश्न 1:संघवाद किसे कहते हैं?
उत्तर: शासन की वह व्यवस्था जिसमें किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उसे संघवाद कहते हैं।
प्रश्न 2:किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के कितने स्तर होते हैं?
उत्तर: किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के दो स्तर होते हैं। एक स्तर पर पूरे देश के लिये एक सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य की सरकारें होती हैं।
प्रश्न 3:संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर: संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है। हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है।
संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है। हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है।
प्रश्न 4:संघीय ढ़ाँचे के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर: संघीय ढ़ाँचे के दो उद्देश्य होते हैं। पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना। दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना।
प्रश्न 5:किसी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू क्या हैं?
उत्तर: किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं; पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति।
प्रश्न 6:सबको साथ लाकर संघ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत: एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया।
प्रश्न 7:सबको जोड़कर संघ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो। उदाहरण के लिए; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं: भारत, स्पेन, बेल्जियम, आदि।
प्रश्न 8:यूनियन लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इस लिस्ट में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं। कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। यूनियन लिस्ट के कुछ विषय हैं; देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
प्रश्न 9:स्टेट लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें स्टेट लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
प्रश्न 10:साझा लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं, इस लिस्ट में आते हैं। साझा लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
प्रश्न 11:केंद्र शासित प्रदेश का मतलब समझाएँ।
उत्तर: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, आदि।
☆END☆
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