5.उपभोक्ता के अधिकार
बाजार और उपभोक्ता
जब कोई उपभोक्ता किसी उत्पाद का इस्तेमाल करता है तो वह भी बाजार में भागीदार बन जाता है। उपभोक्ता के बगैर हम किसी कम्पनी के अस्तित्व के बारे में सोच भी नहीं सकते। उपभोक्ता के इतने महत्व के बावजूद उपभोक्ता को अपने समुचित अधिकार नहीं मिल पाते हैं। आपका पाला अक्सर ऐसे दुकानदारों से पड़ा होगा जो वजन करते समय बेईमानी करते हैं और कम तौलते हैं। बहुत सारे दुकानदार खाने के सामानों में मिलावट करते हैं। यदि आप कभी किसी दुकानदार से इसकी शिकायत करेंगे तो वह झगड़ा करने पर उतारू हो जायेगा।
ट्रेन में सफर करते समय तो ग्राहक की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। ट्रेन में हमेशा खाने पीने की घटिया चीजें मिलती हैं। ट्रेन की पैंट्री में जो खाना बेचा जाता है वह बहुत महंगा होता है और घटिया क्वालिटी का होता है।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन:
भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की सुधि ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
उपभोक्ता के अधिकार
सूचना पाने का अधिकार: हर उपभोक्ता को यह अधिकार होता है कि उसे उत्पाद के बारे में सही जानकारी मिले। ऐसे कानून बन चुके हैं जिनके अनुसार उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा की जानकारी देना अनिवार्य है। सही सूचना उपभोक्ता को इस बात में मदद करती है कि वह किसी उत्पाद को खरीदने के लिये उचित निर्णय ले सके। किसी भी उत्पाद के पैक पर अधिकतम खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य हो गया है। यदि कोई दुकानदार एमआरपी से अधिक मूल्य लेता है तो उपभोक्ता इसकी शिकायत कर सकता है।
चयन का अधिकार: एक उपभोक्ता को यह अधिकार होना चाहिए कि उसके पास चुनने के लिये कई विकल्प हों। कोई भी विक्रेता किसी भी उत्पाद का केवल एक ही ब्रांड पेश नहीं कर सकता है। इससे मोनोपॉली की रोकथाम होती है।
क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार: अक्सर उत्पादक अपने उत्पादों के बारे में झूठे वादे करते हैं। कभी भी किसी उत्पाद में कोई त्रुटि भी हो सकती है। यदि किसी उपभोक्ता को इनके कारण कोई क्षति होती है तो उसे क्षतिपूर्तिनिवारण का अधिकार होता है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने एक स्कूटर खरीदा और पहले महीने में ही उस स्कूटर का इंजन काम करना बंद कर दे। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को यह अधिकार होता है कि बदले में उसके स्कूटर का इंजन मुफ्त में ठीक कराया जाये या इंजन को बदल दिया जाये।
कंज्यूमर फोरम:
भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिये स्थानीय स्तर पर कई संस्थाओं का गठन हुआ है। इन संस्थाओं को कंज्यूमर फोरम या कंज्यूमर प्रोटेक्शन काउंसिल कहते हैं। इन संस्थाओं का काम है किसी भी उपभोक्ता को कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर करने में मार्गदर्शन करना। कई बार ऐसी संस्थाएँ कंज्यूमर कोर्ट में उपभोक्ता की तरफ से वकालत भी करती हैं। ऐसे संस्थानों को सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है ताकि उपरोक्ता जागरूकता की दिशा में ठोस काम हो सके।
आजकल कई रिहायशी इलाकों में रेजिडेंट वेलफेअर एसोसियेशन होते हैं। यदि ऐसे किसी एसोसियेशन के किसी भी सदस्य को किसी विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ठगा गया हो तो ये उस सदस्य के लिये मुकदमा भी लड़ते हैं।
कंज्यूमर कोर्ट
यह एक अर्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें तीन लेयर होते हैं। इन स्तरों के नाम हैं जिला स्तर के कोर्ट, राज्य स्तर के कोर्ट और राष्ट्रीय स्तर के कोर्ट। 20 लाख रुपये तक के क्लेम वाले केस जिला स्तर के कोर्ट में सुनवाई के लिये जाते हैं। 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के केस राज्य स्तर के कोर्ट में जाते हैं। 1 करोड़ से अधिक के क्लेम वाले केस राष्ट्रीय स्तर के कंज्यूमर कोर्ट में जाते हैं। यदि कोई केस जिला स्तर के कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता को राज्य स्तर पर; और उसके बाद; राष्ट्रीय स्तर पर अपील करने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस
24 दिसंबर को राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था। भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं। हाल के समय में उपभोक्ता आंदोलन ने भारत में अच्छी पैठ बनाई है। ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में 700 से अधिक कंज्यूमर ग्रुप हैं। उनमे से 20 – 25 अच्छी तरह से संगठित हैं और अपने काम के लिये जाने जाते हैं।
लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।
NCERT Solution
प्रश्न 1: बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
उत्तर: नियमों तथा विनियमों की मदद से बाजार सही ढ़ंग से काम करता है। किसी भी व्यवसाय का मुख्य लक्ष्य होता है मुनाफे को अधिक से अधिक करना। नियम और कानून से यह सुनिश्चित किया जाता है कि मुनाफे के फेर में ग्राहक के जीवन स्तर से कोई समझौता न हो। हम अपने चारों ओर खाने की चीजों में मिलावट के कई उदाहरण देख सकते हैं। दूधवाला, मिठाईवाला, आदि अक्सर मिलावटी सामान बेचते हैं। सही नियम को लागू करके ही इस गलत आदत को रोका जा सकता है।
प्रश्न 2: भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
उत्तर: भारत के व्यवसायियों में गलत काम करने की पुरानी परंपरा रही है; जैसे मिलावट करना, जमाखोरी और कम वजन तौलना। 1960 के दशक से ही कई उपभोक्ता संघों का जन्म हुआ। उन्होंने जागरूकता अभियान चलाया और ग्राहकों की सुरक्षा के लिये लड़ाई लड़ी। इस लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप 1986 में कोपरा को लागू किया गया।
प्रश्न 3: दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।
उत्तर: ज्यादातर लोग न्यूनतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) को देखने की जहमत भी नहीं उठाते और दुकानदार जितनी रकम माँगता है उतनी दे देते हैं। अपने पड़ोस के दुकानदार पर विश्वास करना एक अच्छी आदत हो सकती है लेकिन एमआरपी को चेक करना भी उतना ही जरूरी होता है। कई लोग तो दवा के पैक पर एक्सपायरी डेट भी नहीं देखते हैं। इससे मरीज की जान को खतरा हो सकता है। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपभोक्ता में जागरूकता की जरूरत है।
प्रश्न 4: कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें, जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है?
उत्तर: उपभोक्ता के शोषण के कुछ कारक नीचे दिये गये हैं:
उपभोक्ता में जागरूकता की कमी व्यवसायी की लालच नियमों के पालन में ढ़िलाई उपभोक्ता शिकायत के मामलों के निबटारे में देरी
प्रश्न 5: उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर: शोषण के खिलाफ उपभोक्ताओं की सुरक्षा के कारण ही कोपरा 1986 को लागू किया गया।
प्रश्न 6: अपने क्षेत्र के बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर: किसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जाने से पहले मुझे वहाँ यह देखना चाहिए कि पार्किंग की सुविधा है या नहीं। मुझे वहाँ पर अग्निशामक यंत्रों की उपलब्धता के बारे में भी पता करना चाहिए। मुझे यह देखना चाहिए कि एक्सपायरी डेट के बाद वाला कोई उत्पाद शेल्फ पर तो नहीं रखा है। बिल अदा करने से पहले उसके सही होने की जाँच करनी चाहिए।
प्रश्न 7: मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन सा लोगो या शब्द चिह्न देखेंगे और क्यों?
उत्तर: शहद की बोतल पर मैं एगमार्क का लोगो देखूँगा। इस निशान से यह पता चलता है कि शहद को पैक करने से पहले खाद्य पदार्थ से संबंधित सुरक्षा के नियमों का पालन किया गया था।
प्रश्न 8: भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिये सरकार द्वारा किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए?
उत्तर: भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिये सरकार ने 1986 में कोपरा को लागू किया। उसके बाद भारत ने कई स्तरों पर उपभोक्ता कोर्ट की स्थापना की ताकि लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
प्रश्न 9: उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर: उपभोक्ता के कुछ अधिकार नीचे दिये गये हैं:
सूचना पाने का अधिकार: एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून हैं जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते हैं। चयन का अधिकार: एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। इस अधिकार को मोनोपॉली ट्रेड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है। क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार: यदि किसी उपभोक्ता को उत्पादक के झूठे वादों या उत्पादन की त्रुटियों के कारण कोई भी क्षति होती है तो उसे क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार होता है।
प्रश्न 10: उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
उत्तर: बाकी उपभोक्ताओं की मदद करने के लिये उपभोक्ता को किसी उपभोक्ता समूह का हिस्सा बन जाना चाहिए। कोई भी उपभोक्ता स्वयं ही उपभोक्ता जागरूकता के लिये कदम उठा सकता है। पोस्टर, संपादक के नाम पत्र, ब्लॉग लिखकर, आदि के द्वारा ऐसा किया जा सकता है।
प्रश्न 11: भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
उत्तर: विक्रेताओं द्वारा शोषण की परंपरा के खिलाफ लड़ने की इच्छा के कारण भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत हुई। पहले उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिये कोई कानून नहीं था। लगभग दो दशकों के संघर्ष के बाद ही सरकार ने उपभोक्ता अदालतों का गठन शुरु किया। अभी भी उपभोक्ता शिकायत के कई मामले लंबे समय तक लंबित रहते हैं। कोर्ट में किसी भी केस का फैसला आने में 20 से 30 वर्ष तक लग जाते हैं। अभी भी भारत में उपभोक्ता आंदोलन इतना शक्तिशाली नहीं हुआ है कि व्यवसायियों की ताकतवर लॉबी से मुकाबला कर सके। इसलिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
प्रश्न 12: निम्नलिखित को सुमेलित करें:
1. एक उत्पाद के घटकों का विवरण | a) सुरक्षा का अधिकार |
2. एगमार्क | b) उपभोक्ता मामलों में संबंध |
3. स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना | c) अनाजों और खाद्य तेल का प्रमाण |
4. जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने वाली एजेंसी | d) उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था |
5. उपभोक्ता इंटरनेशनल | e) सूचना का अधिकार |
6. भारतीय मानक ब्यूरो | f) वस्तुओं और सेवाओं के लिये मानक |
उत्तर: 1 - e, 2 - c, 3 - a, 4 - b, 5 - d, 6 - f
प्रश्न 13: सही या गलत बताएँ
- कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है।
- भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण के लिये विशिष्ट अदालतें हैं।
- जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे जिला उपभोक्ता अदालत में निश्चित रूप से मुकदमा दायर करना चाहिए।
- जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभप्रद होता है।
- हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखने वाला प्रमाण है।
- उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है।
- उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
उत्तर: 1 - गलत, 2 - सही, 3 - सही, 4 - गलत, 5 - सही, 6 - गलत, 7 - सही
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