6.विनिर्माण उद्योग
विनिर्माण: जब कच्चे माल को मूल्यवान उत्पाद में बनाकर अधिक मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है तो उस प्रक्रिया को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहते हैं।
विनिर्माण का महत्व
- विनिर्माण उद्योग से कृषि को आधुनिक बनाने में मदद मिलती है।
- विनिर्माण उद्योग से लोगों की आय के लिये कृषि पर से निर्भरता कम होती है।
- विनिर्माण से प्राइमरी और सेकंडरी सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है।
- इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में मदद मिलती है।
- विनिर्माण द्वारा उत्पादित वस्तुओं से निर्यात बढ़ता है जिससे विदेशी मुद्रा देश में आती है।
- किसी देश में बड़े पैमाने पर विनिर्माण होने से देश में संपन्नता आती है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण उद्योग का योगदान
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उद्योग का कुल शेअर 27% है। इसमें से 10% खनन, बिजली और गैस से आता है। शेष 17% विनिर्माण से आता है। लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का यह शेअर पिछले दो दशकों से स्थिर रहा है।
पिछले दशक में विनिर्माण की वृद्धि दर 7% रही है। 2003 से यह वृद्धि दर 9 से 10% रही है। अगले दशक के लिये कम से कम 12% की वृद्धि दर की आवश्यकता है।
भारत सरकार ने नेशनल मैन्युफैक्चरिंग काउंसिल (NMCC) का गठन किया गया है ताकि सही नीतियाँ बनाई जा सकें और उद्योग सही ढ़ंग से कार्य करे।
उद्योग अवस्थिति
उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
- कच्चे माल की उपलब्धता
- श्रम की उपलब्धता
- पूंजी की उपलब्धता
- ऊर्जा की उपलब्धता
- बाजार की उपलब्धता
- आधारभूत ढ़ाँचे की उपलब्धता
कुछ उद्योग शहर के निकट स्थित होते हैं जिससे उद्योग को कई लाभ मिलते हैं। शहर के पास होने के कारण बाजार उपलब्ध हो जाता है। इसके अलावा शहर से कई सेवाएँ भी मिल जाती हैं; जैसे कि बैंकिंग, बीमा, यातायात, श्रमिक, विशेषज्ञ सलाह, आदि। ऐसे औद्योगिक केंद्रों को एग्लोमेरेशन इकॉनोमी कहते हैं।
आजादी के पहले के समय में ज्यादातर औद्योगिक इकाइयाँ बंदरगाहों के निकट होती थीं; जैसे कि मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, आदि। इसके फलस्वरूप ये क्षेत्र ऐसे औद्योगिक शहरी क्षेत्रों के रूप में विकसित हुए जिनके चारों ओर ग्रामीण कृषि पृष्ठप्रदेश थे।
उद्योग के प्रकार:
कच्चे माल के आधार पर वर्गीकरण:
कृषि आधारित उद्योग: कपास, ऊन, जूट, सिल्क, रबर, चीनी, चाय, कॉफी, आदि।
खनिज आधारित उद्योग: लोहा इस्पात, सीमेंट, अलमुनियम, पेट्रोकेमिकल्स, आदि।
भूमिका के आधार पर वर्गीकरण:
आधारभूत उद्योग: जो उद्योग अन्य उद्योगों को कच्चे माल और अन्य सामान की आपूर्ति करते हैं उन्हें आधारभूत उद्योग कहते हैं। उदाहरण: लोहा इस्पात, तांबा प्रगलन, अलमुनियम प्रगलन, आदि।
उपभोक्ता उद्योग: जो उद्योग सीधा ग्राहक को सामान सप्लाई करते हैं उन्हें उपभोक्ता उद्योग कहते हैं। उदाहरण: चीनी, कागज, इलेक्ट्रॉनिक्स, साबुन, आदि।
पूंजी निवेश के आधार पर:
लघु उद्योग: जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी का निवेश हो तो उसे लघु उद्योग कहते हैं।
बृहत उद्योग: जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी का निवेश हो तो उसे बृहत उद्योग कहते हैं।
स्वामित्व के आधार पर:
सार्वजनिक या पब्लिक सेक्टर: जो उद्योग सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित होते हैं उन्हें पब्लिक सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: SAIL, BHEL, ONGC, आदि।
प्राइवेट सेक्टर: जो उद्योग किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा संचालित संचालित होते हैं उन्हें प्राइवेट सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: टिस्को, रिलायंस, महिंद्रा, आदि।
ज्वाइंट सेक्टर: जो उद्योग सरकार और व्यक्तियों द्वारा साझा रूप से प्रबंधित होते हैं उन्हें ज्वाइंट सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: ऑयल इंडिया लिमिटेड।
को-ऑपरेटिव सेक्टर: जिन उद्योगों का प्रबंधन कच्चे माल के निर्माता या सप्लायर या कामगार या दोनों द्वारा किया जाता है उन्हें को-ऑपरेटिव सेक्टर कहते हैं। इस प्रकार के उद्योग में संसाधनों को संयुक्त रूप से इकट्ठा किया जाता। इस सिस्टम में लाभ या हानि को अनुपातिक रूप से वितरित किया जाता है। मशहूर दूध को-ऑपरेटिव अमूल इसका बेहतरीन उदाहरण है। महाराष्ट्र का चीनी उद्योग इसका एक और उदाहरण है। लिज्जत पापड़ भी को-ऑपरेटिव सेक्टर का एक अच्छा उदाहरण है।
कच्चे और तैयार माल की मात्रा और भार के आधार पर:
भारी उद्योग: लोहा इस्पात
हल्के उद्योग: इलेक्ट्रॉनिक्स
विनिर्माण उद्योग
कपड़ा उद्योग
भारत की अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश के कुल औद्योगिक उत्पाद का 14% कपड़ा उद्योग से आता है। रोजगार के अवसर प्रदान करने के मामले में कृषि के बाद कपड़ा उद्योग का स्थान दूसरे नंबर पर है। इस उद्योग में 3.5 करोड़ लोगों को सीधे रूप से रोजगार मिलता है। सकल घरेलू उत्पाद में कपड़ा उद्योग का शेअर 4% है। यह भारत का इकलौता उद्योग है जो वैल्यू चेन में आत्मनिर्भर है और संपूर्ण है।
सूती कपड़ा: पारंपरिक तौर पर सूती कपड़े बनाने के लिए तकली और हथकरघा का इस्तेमाल होता था। अठारहवीं सदी के बाद पावर लूम का इस्तेमाल होने लगा। किसी जमाने में भारत का कपड़ा उद्योग अपनी गुणवत्ता के लिये पूरी दुनिया में मशहूर था। लेकिन अंग्रेजी राज के समय इंगलैंड की मिलों में बने कपड़ों के आयात के कारण भारत का कपड़ा उद्योग तबाह हो गया था।
वर्तमान में भारत में 1600 सूती और सिंथेटिक कपड़े की मिलें हैं। उनमें से लगभग 80% प्राइवेट सेक्टर में हैं। बाकी की मिलें पब्लिक सेक्टर और को-ऑपरेटिव सेक्टर में हैं। इनके अलावा हजारों ऐसी छोटी-छोटी फैक्टरियाँ हैं जिनके पास चार से लेकर दस करघे हैं।
सूती कपड़ा उद्योग की अवस्थिति
शुरुआती दौर में यह उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात के कॉटन बेल्ट तक ही सीमित हुआ करता था। सूती कपड़ा उद्योग के लिये यह बेल्ट आदर्श था क्योंकि यहाँ कच्चे माल, बंदरगाह, यातायात के साधन, श्रम, नम जलवायु, आदि की उपलब्धता थी। यह उद्योग से कपास उगाने वालों, कपास चुनने वालों, धुनाई करने वालों, सूत की कताई करने वालों, रंगरेजों, डिजाइनर, पैकिंग करने वालों और दर्जियों को रोजगार प्रदान करता है। कपड़ा उद्योग कई अन्य उद्योगों को भी पालता है; जैसे केमिकल और डाई, मिल स्टोर, पैकेजिंग मैटीरियल और इंजीनियरिंग वर्क्स।
आज भी कताई का काम मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और तामिलनाडु में केंद्रित है। लेकिन बुनाई का काम देश के कई हिस्सों में फैला हुआ है।
भारत में कपड़े का उत्पादन | ||
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सेक्टर | उत्पाद में शेअर | लूमेज |
मिल | 6% | 1.33 लाख |
पावरलूम | 54.17% | 14 लाख |
हैंडलूम | 23% | NA |
भारत जापान को सूती धागे निर्यात करता है। सूती उत्पाद अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोप, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका और अफ्रिकी देशों को भी निर्यात किये जाते हैं।
चीन के बाद भारत के पास स्पिंडल्स (तकुओं) की दूसरी सबसे बड़ी क्षमता है। वर्तमान में भारत में 3.4 करोड़ के आस पास स्पिंडल्स की क्षमता है। सूती धागे के विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी एक चौथाई यानि 25% है। लेकिन सूती पोशाकों के व्यवसाय में भारत का शेअर केवल 4% ही है। हमारे स्पिनिंग मिल इतने सक्षम हैं कि ग्लोबल लेवेल पर कंपीट कर सकते हैं और जो भी रेशे हम उत्पादित करते हैं उन सबकी खपत कर सकते हैं। लेकिन हमारे बुनाई, कताई और प्रक्रमण यूनिट उतने सक्षम नहीं हैं कि देश में बनने वाले उच्च क्वालिटी के रेशों का इस्तेमाल कर सकें।
सूती कपड़ा उद्योग की समस्याएँ: इस उद्योग की मुख्य समस्याएँ हैं बिजली की अनियमित सप्लाई और पुरानी मशीनें। इसके अलावा अन्य समस्याएँ हैं; श्रमिकों की कम उत्पादकता और सिंथेटिक रेशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
जूट उद्योग
कच्चे जूट और जूट से बने सामानों के मामले में भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है। बंगलादेश के बाद भारत जूट का दूसरे नंबर का निर्यातक है। भारत की 70 जूट मिलों में ज्यादातर पश्चिम बंगाल में हैं जो मुख्यतया हुगली नदी के किनारे स्थित हैं। जूट उद्योग एक पतली बेल्ट में स्थित है जो 98 किमी लंबी और 3 किमी चौड़ी है।
हुगली घाटी के गुण
हुगली घाटी के मुख्य गुण हैं; जूट उत्पादक क्षेत्रों से निकटता, सस्ता जल यातायात, रेल और सड़क का अच्छा जाल, जूट के परिष्करण के लिये प्रचुर मात्रा में जल और पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से मिलने वाले सस्ते मजदूर।
जूट उद्योग सीधे रूप से 2.61 लाख कामगारों को रोजगार प्रदान करता है। साथ में यह उद्योग 40 लाख छोटे और सीमांत किसानों का भी भरण पोषण करता है। ये किसान जूट और मेस्टा की खेती करते हैं।
जूट उद्योग की चुनौतियाँ
जूट उद्योग को सिंथेटिक फाइबर से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। साथ में इसे बंगलादेश, ब्राजील, फिलिपींस, मिस्र और थाइलैंड से भी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। सरकार ने पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग की नीति बनाई है। इसके कारण देश के अंदर ही मांग में वृद्धि हो रही है। 2005 में नेशनल जूट पॉलिसी बनाई गई थी जिसका उद्देश्य था जूट की उत्पादकता, क्वालिटी और जूट किसानों की आमदनी को बढ़ाना। विश्व में पर्यावरण के लिये चिंता बढ़ रही है और पर्यावरण हितैषी और जैवनिम्नीकरणीय पदार्थों पर जोर दिया जा रहा है। इसलिये जूट का भविष्य उज्ज्वल दिखता है। जूट उत्पाद के मुख्य बाजार हैं अमेरिका, कनाडा, रूस, अमीरात, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया।
चीनी उद्योग
विश्व में भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत गुड़ और खांडसारी का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में 460 से अधिक चीनी मिलें हैं; जो उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और मध्य प्रदेश में फैली हुई हैं। साठ प्रतिशत मिलें उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं और बाकी अन्य राज्यों में हैं। मौसमी होने के कारण यह उद्योग को-ऑपरेटिव सेक्टर के लिये अधिक उपयुक्त है।
हाल के वर्षों में चीनी उद्योग दक्षिण की ओर शिफ्ट कर रहा है। ऐसा विशेष रूप से महाराष्ट्र में हो रहा है। इस क्षेत्र में पैदा होने वाले गन्ने में शर्करा की मात्रा अधिक होती है। इस क्षेत्र की ठंडी जलवायु से गन्ने की पेराई के लिये अधिक समय मिल जाता है।
चीनी उद्योग की चुनौतियाँ: इस उद्योग की मुख्य चुनौतियाँ हैं; इसका मौसमी होना, उत्पादन का पुराना और कम कुशल तरीका, यातायात में देरी और खोई (baggage) का अधिकतम इस्तेमाल न कर पाना।
खनिज पर आधारित उद्योग
लोहा इस्पात उद्योग
लोहा इस्त्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि लोहे का इस्तेमाल मशीनों को बनाने में होता है। इस कारण से स्टील के उत्पादन और खपत को किसी भी देश के विकास के सूचक के रूप में लिया जाता है।
भारत में कच्चे इस्पाद का उत्पादन 32.8 मिलियन टन है और विश्व में इसका 9वाँ स्थान है। भारत स्पॉंज लोहे का सबसे बड़ा उत्पादक है। लेकिन भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत केवल 32 किग्रा प्रति वर्ष है।
अभी भारत में 10 मुख्य संकलित स्टील प्लांट हैं। इनके अलावा कई छोटे प्लांट भी हैं। इस सेक्टर में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड एक मुख्य पब्लिक सेक्टर कंपनी है। प्राइवेट सेक्टर की मुख्य कम्पनी है टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी।
भारत में स्टील का कुल उत्पादन | |
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वर्ष | उत्पादन (मिलियन टन में) |
1950 – 51 | 1.04 |
1960 – 61 | 2.39 |
1970 – 71 | 4.64 |
1980 – 81 | 6.82 |
1990 – 91 | 13.53 |
1997 – 98 | 23.40 |
2004 – 05 | 32.60 |
भारत में ज्यादातर लोहा इस्पात उद्योग छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में केंद्रित है। इस क्षेत्र में सस्ता लौह अयस्क, उच्च क्वालिटी का कच्चा माल, सस्ते मजदूर और रेल और सड़क से अच्छा संपर्क है।
भारत में लोहा इस्पात उद्योग के खराब प्रदर्शन के कारण:
- कोकिंग कोल की सीमित उपलब्धता और ऊँची कीमत
- श्रमिकों की कम उत्पादकता
- अनियमित विद्युत सप्लाई
- अविकसित अवसंरचना
अलमुनियम प्रगलन
भारत में अलमुनियम प्रगलन दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। अलमुनियम को अक्सर मिश्रधातु में बदला जाता है। अलमुनियम के मिश्रधातु का इस्तेमाल विभिन्न उत्पादों के निर्माण में किया जाता है।
भारत में अलमुनियम प्रगलन के आठ प्लांट हैं। ये उड़ीसा (नालको और बालको), पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तामिलनाडु में हैं। 2004 में भारत में 600 मिलियन टन अलमुनियम का उत्पादन हुआ था।
रसायन उद्योग
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में रसायन उद्योग का शेअर 3% है। भारत का रसायन उद्योग का एशिया में तीसरे नम्बर पर है और विश्व में बारहवें नम्बर पर है।
अकार्बनिक रसायन: सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, अल्काली, सोडा ऐश और कॉस्टिक सोडा अकार्बनिक रसायन हैं। सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल उर्वरक, सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक, एढ़ेसिव, पेंट और डाई बनाने में किया जाता है। सोडा ऐश का इस्तेमाल काँच, साबुन, डिटर्जेंट, कागज, आदि बनाने में होता है।
कार्बनिक रसायन: पेट्रोकेमिकल इस श्रेणी में आता है। पेट्रोकेमिकल का इस्तेमाल सिंथेटिक फाइबर, सिंथेटिक रबर, प्लास्टिक, डाई, दवा, आदि बनाने में होता है। कार्बनिक रसायन की फैक्टरियाँ तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल प्लांट के आस पास मौजूद हैं।
रसायन उद्योग ही अपना सबसे बड़ा ग्राहक होता है।
उर्वरक उद्योग
उर्वरक उद्योग में मुख्य रूप से नाइट्रोजन युक्त उर्वरक, फॉस्फ़ेटिक उर्वरक, अमोनियम फॉस्फेट और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। कॉम्प्लेक्स उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का समावेश होता है। भारत के पास वाणिज्यिक रूप से इस्तेमाल लायक पोटाश या पोटैशियम उत्पाद के भंडार नहीं हैं। इसलिई भारत को पोटाश का आयात करना पड़ता है।
भारत नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहाँ 57 खाद कारखाने हैं जहाँ नाइट्रोजन युक्त उर्वरक और कॉम्प्लेक्स उर्वरक का उत्पादन होता है। उनमें से 29 कारखानों में यूरिया का उत्पादन होता है और 9 कारखानों में बाइप्रोडक्ट के रूप में अमोनियम सल्फेट का उत्पादन होता है। यहाँ 68 छोटे कारखाने हैं जो सिंगल सुपरफॉस्फेट बनाते हैं।
सीमेंट उद्योग
सीमेंट उद्योग में भारी कच्चा माल लगता है; जैसे चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम। गुजरात में सीमेंट के कई कारखाने हैं क्योंकि वहाँ बंदरगाह नजदीक है।
भारत में सीमेंट के 128 बड़े और 323 छोटे कारखाने हैं।
क्वालिटी में सुधार के बाद से भारत के सीमेंट को पूर्वी एशिया, गल्फ देशों, अफ्रिका और दक्षिण एशिया में अच्छा बाजार मिल गया है। उत्पादन और निर्यात के मामले में यह उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
मोटरगाड़ी उद्योग
आज भारत में लगभग हर प्रकार की मोटरगाड़ी बनती है। 1991 की उदारवादी नीतियों के बाद कई मोटरगाड़ी कम्पनियों ने भारत में काम शुरु कर दिया। आज का भारत मोटरगाड़ी के लिए अच्छा बाजार बन गया है। अभी भारत में कार और मल्टी यूटिलिटी वेहिकल के 15 निर्माता, कॉमर्सियल वेहिकल के 9 निर्माता और दोपहिया वाहन के 15 निर्माता हैं। मोटरगाड़ी उद्योग के मुख्य केंद्र हैं दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, बंगलोर, सानंद, पंतनगर, आदि।
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का मुख्य केंद्र बंगलोर है। इस उद्योग के अन्य मुख्य केंद्र हैं मुम्बई, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और कोयम्बटूर। देश में 18 सॉफ्टवेयर टेक्नॉलोजी पार्क हैं। ये सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा और उच्च डाटा संचार की सुविधा देते है।
इस उद्योग ने भारी संख्या में रोजगार प्रदान किये है। 31 मार्च 2005 तक 10 लाख से अधिक लोग सूचना प्रौद्योगिकी में कार्यरत हैं। हाल के वर्षों में बीपीओ में तेजी से वृद्धि हुई है। इसलिये इस सेक्टर से विदेशी मुद्रा की अच्छी कमाई होती है।
औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण निम्नीकरण
वायु प्रदूषण: उद्योग में वृद्धि से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचता है। कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण वायु प्रदूषण होता है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों से भी समस्या होती है। कुछ उद्योगों से हानिकारक रसायन के रिसाव का खतरा रहता है; जैसा भोपाल गैस त्रासदी के समय हुआ था। वायु प्रदूषण इंसानों की सेहत, जानवरों, पादपों और भवनों के लिये हानिकारक होता है। इससे पूरे वातावरण पर असर पड़ता है।
जल प्रदूषण: उद्योग से निकलने वाला कार्बनिक और अकार्बनिक कचरा और अपशिष्ट से जल प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार उद्योग हैं; कागज, लुगदी, रसायन, कपड़ा, डाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चमड़ा उद्योग, आदि।
जल का तापीय प्रदूषण: जब थर्मल प्लांट से गरम पानी सीधा नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है तो जल का तापीय प्रदूषण होता है। इससे जल में रहने वाले सजीवों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि ज्यादातर सजीव एक खास तापमान रेंज में ही जीवित रह सकते हैं।
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट में रेडियोऐक्टिव पदार्थ होते हैं। इन पदार्थों को सही ढ़ंग से रखने की जरूरत होती है। रेडियोऐक्टिव पदार्थों में हल्की सी भी लीकेज होने से इंसानों और अन्य सजीवों को होने वाले नुकसान दूरगामी होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: कारखानों से ध्वनि प्रदूषण की भी समस्या होती है। ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी, उच्च रक्तचाप और बहरापन की समस्या होती है। कारखाने के मशीन, जेनरेटर, इलेक्ट्रिक ड्रिल, आदि से काफी ध्वनि प्रदूषण होता है।
उद्योग द्वारा पर्यावरण को होने वाले नुकसान की रोकथाम:
जल का पुन:चक्रीकरण होना चाहिए। जल के पुन:चक्रीकरण से ताजे पानी के इस्तेमाल को कम किया जा सकता है।
वर्षाजल संग्रहण पर जोर देना चाहिए।
गरम पानी और अपशिष्टों को समुचित उपचार के बाद ही नदियों और तालाबों में छोड़ना चाहिए।
NCERT Solution
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न:1 निम्न में से कौन सा उद्योग चूना पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त करता है?
- एल्यूमिनियम
- सीमेंट
- चीनी
- पटसन
उत्तर: सीमेंट
प्रश्न:2 निम्न में से कौन सी एजेंसी सार्वजनिक क्षेत्र में स्टील को बाजार में उपलब्ध कराती है?
- हेल (HAIL)
- टाटा स्टील
- सेल (SAIL)
- एम एन सी सी
उत्तर: सेल (SAIL)
प्रश्न:3 निम्न में से कौन सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
- एल्यूमिनियम
- पटसन
- सीमेंट
- स्टील
उत्तर: एल्यूमिनियम
प्रश्न:4 निम्न में से कौन सा उद्योग दूरभाष, कंप्यूटर और संयंत्र निर्मित करते हैं?
- स्टील
- इलेक्ट्रानिक
- एल्यूमिनियम
- सूचना प्रौद्योगिकी
उत्तर: इलेक्ट्रानिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न:1 विनिर्माण क्या है?
उत्तर: कच्चे माल को मूल्यवान उत्पाद में बनाकर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहते हैं।
प्रश्न:2 उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारक बताएँ।
उत्तर: आधारभूत ढ़ाँचा, कच्चा माल और जल की उपलब्धता
प्रश्न:3 औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारक बताएँ।
उत्तर: श्रम, पूँजी और बाजार
प्रश्न:4 आधारभूत उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताएँ।
उत्तर: ये उद्योग दूसरे उद्योगों को कच्चे माल और अन्य सामान की आपूर्ति करते हैं। उदाहरण: लोहा इस्पात, तांबा प्रगलन, अलमुनियम प्रगलन, आदि।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न:1 समंवित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है? इस उद्योग की क्या समस्याएँ हैं? किन सुधारों के अंतर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है?
उत्तर: एक समंवित इस्पात प्लांट बड़ा प्लांट होता है। इसमें लौह अयस्क और अन्य कच्चे माल को एकत्र करने से लोहा बनाने और उसे आकार देने तक का काम होता है। मिनी इस्पात प्लांट बड़े प्लांटों से स्टील और सॉफ्ट आयरन खरीद कर उनसे विभिन्न उत्पाद बनाते हैं।
इस उद्योग की समस्याएँ निम्नलिखित हैं:
- उच्च लागत तथा कोकिंग कोल की सीमित उपलब्धता
- कम श्रमिक उत्पादकता
- ऊर्जा की अनियमित पूर्ति
- अविकसित संरचना
- हमारा कुल इस्पात उत्पादन घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सक्षम है।
फिर भी उदारीकरण के बाद प्राइवेट सेक्टर की बढ़ती भागीदारी से इस क्षेत्र में विकास हुआ है।
इसके अलावा इस्पात उद्योग में रिसर्च और अनुसंधान के जरिये भी उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
प्रश्न:2 उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
उत्तर: उद्योग पर्यावरण को निम्न तरीकों से प्रदूषित करते हैं:
वायु प्रदूषण: कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण वायु प्रदूषण होता है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों से भी समस्या होती है। कारखानों की चिमनियों से धुँआ निकलता है। कुछ उद्योगों से हानिकारक रसायन भी निकलने का खतरा रहता है।
जल प्रदूषण: उद्योग से निकलने वाला कार्बनिक और अकार्बनिक कचरा और अपशिष्ट से जल प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार उद्योग हैं; कागज, लुगदी, रसायन, कपड़ा, डाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चमड़ा उद्योग, आदि।
जल का तापीय प्रदूषण: जब थर्मल प्लांट से गरम पानी सीधा नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है तो जल का तापीय प्रदूषण होता है। इससे जल में रहने वाले सजीवों को बहुत नुकसान होता है।
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट में रेडियोऐक्टिव पदार्थ होते हैं जिन्हें सही ढ़ंग से रखने की जरूरत होती है। रेडियोऐक्टिव पदार्थों में हल्की सी भी लीकेज होने से इंसानों और अन्य सजीवों को होने वाले नुकसान दूरगामी होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी, उच्च रक्तचाप और बहरापन की समस्या होती है। कारखाने के मशीन, जेनरेटर, इलेक्ट्रिक ड्रिल, आदि से काफी ध्वनि प्रदूषण होता है।
प्रश्न:3 उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गये विभिन्न उपायों की चर्चा करें।
उत्तर: उद्योग द्वारा पर्यावरण को होने वाले नुकसान की रोकथाम:
- जल का पुन:चक्रीकरण होना चाहिए। इससे ताजे पानी के इस्तेमाल को कम किया जा सकता है।
- वर्षाजल संग्रहण पर जोर देना चाहिए।
- गरम पानी और अपशिष्टों को समुचित उपचार के बाद ही नदियों और तालाबों में छोड़ना चाहिए।
- चिमनी में इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर लगना चाहिए ताकि निलंबित कण हवा में न पहुँचने पाएँ।
Extra Questions Answers
प्रश्न:1 विनिर्माण उद्योग क्या है?
उत्तर: जब कच्चे माल को मूल्यवान उत्पाद में बनाकर अधिक मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है तो उस प्रक्रिया को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहते हैं।
प्रश्न:2 विनिर्माण उद्योग के महत्व क्या क्या हैं?
उत्तर: विनिर्माण उद्योग के महत्व निम्नलिखित हैं:
- विनिर्माण उद्योग से कृषि को आधुनिक बनाने में मदद मिलती है।
- विनिर्माण उद्योग से लोगों की आय के लिये कृषि पर से निर्भरता कम होती है।
- विनिर्माण से प्राइमरी और सेकंडरी सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है।
- इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में मदद मिलती है।
- विनिर्माण द्वारा उत्पादित वस्तुओं से निर्यात बढ़ता है जिससे विदेशी मुद्रा देश में आती है।
- किसी देश में बड़े पैमाने पर विनिर्माण होने से देश में संपन्नता आती है।
प्रश्न:3 उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?
उत्तर: उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
- कच्चे माल की उपलब्धता
- श्रम की उपलब्धता
- पूंजी की उपलब्धता
- ऊर्जा की उपलब्धता
- बाजार की उपलब्धता
- आधारभूत ढ़ाँचे की उपलब्धता
प्रश्न:4 कृषि पर आधारित उद्योगों के उदाहरण दें।
उत्तर: कपास, ऊन, जूट, सिल्क, रबर, चीनी, चाय, कॉफी, आदि।
प्रश्न:5 खनिज पर आधारित उद्योगों के उदाहरण दें।
उत्तर: लोहा इस्पात, सीमेंट, अलमुनियम, पेट्रोकेमिकल्स, आदि।
प्रश्न:6 आधारभूत उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जो उद्योग अन्य उद्योगों को कच्चे माल और अन्य सामान की आपूर्ति करते हैं उन्हें आधारभूत उद्योग कहते हैं। उदाहरण: लोहा इस्पात, तांबा प्रगलन, अलमुनियम प्रगलन, आदि।
प्रश्न:7 सार्वजनिक उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जो उद्योग सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रबंधित होते हैं उन्हें पब्लिक सेक्टर कहते हैं। उदाहरण: SAIL, BHEL, ONGC, आदि।
प्रश्न:8 को-ऑपरेटिव सेक्टर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जिन उद्योगों का प्रबंधन कच्चे माल के निर्माता या सप्लायर या कामगार या दोनों द्वारा किया जाता है उन्हें को-ऑपरेटिव सेक्टर कहते हैं। इस प्रकार के उद्योग में संसाधनों को संयुक्त रूप से इकट्ठा किया जाता। इस सिस्टम में लाभ या हानि को अनुपातिक रूप से वितरित किया जाता है। मशहूर दूध को-ऑपरेटिव अमूल इसका बेहतरीन उदाहरण है। महाराष्ट्र का चीनी उद्योग इसका एक और उदाहरण है। लिज्जत पापड़ भी को-ऑपरेटिव सेक्टर का एक अच्छा उदाहरण है।
प्रश्न:9 सूती कपड़ा उद्योग की क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर: इस उद्योग की मुख्य समस्याएँ हैं बिजली की अनियमित सप्लाई और पुरानी मशीनें। इसके अलावा अन्य समस्याएँ हैं; श्रमिकों की कम उत्पादकता और सिंथेटिक रेशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
प्रश्न:10 जूट उद्योग मुख्य रूप से हुगली नदी के आस पास ही क्यों स्थित है?
उत्तर: हुगली घाटी के मुख्य गुण हैं; जूट उत्पादक क्षेत्रों से निकटता, सस्ता जल यातायात, रेल और सड़क का अच्छा जाल, जूट के परिष्करण के लिये प्रचुर मात्रा में जल और पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से मिलने वाले सस्ते मजदूर। इसलिये जूट उद्योग मुख्य रूप से हुगली नदी के आस पास स्थित है।
प्रश्न:11 भारत का चीनी उद्योग दक्षिण की तरफ क्यों शिफ्ट कर रहा है?
उत्तर: हाल के वर्षों में चीनी उद्योग दक्षिण की ओर शिफ्ट कर रहा है। ऐसा विशेष रूप से महाराष्ट्र में हो रहा है। इस क्षेत्र में पैदा होने वाले गन्ने में शर्करा की मात्रा अधिक होती है। इस क्षेत्र की ठंडी जलवायु से गन्ने की पेराई के लिये अधिक समय मिल जाता है।
प्रश्न:12 स्टील के उत्पादन और खपत को किसी देश के विकास के सूचक के रूप में क्यों लिया जाता है?
उत्तर: लोहा इस्त्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि लोहे का इस्तेमाल मशीनों को बनाने में होता है। इस कारण से स्टील के उत्पादन और खपत को किसी भी देश के विकास के सूचक के रूप में लिया जाता है।
प्रश्न:13 भारत के मोटरगाड़ी उद्योग पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: आज भारत में लगभग हर प्रकार की मोटरगाड़ी बनती है। 1991 की उदारवादी नीतियों के बाद कई मोटरगाड़ी कम्पनियों ने भारत में काम शुरु कर दिया। आज का भारत मोटरगाड़ी के लिए अच्छा बाजार बन गया है। अभी भारत में कार और मल्टी यूटिलिटी वेहिकल के 15 निर्माता, कॉमर्सियल वेहिकल के 9 निर्माता और दोपहिया वाहन के 15 निर्माता हैं। मोटरगाड़ी उद्योग के मुख्य केंद्र हैं दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, बंगलोर, सानंद, पंतनगर, आदि।
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