8.उपन्यास समाज और इतिहास
उपन्यास का उदय
साहित्य का एक आधुनिक रूप उपन्यास है। प्रिंट टेक्नॉलोजी के आने से उपन्यास का जन्म हुआ। इस नई टेक्नॉलोजी के कारण उपन्यास लोगों के एक बड़े समूह तक पहुँच पाया।
उपन्यास लिखने की शुरुआत सत्रहवीं सदी में हुई। यह परिपाटी अठारहवीं सदी में जाकर फली फूली। उपन्यास के नये पाठकों में इंग्लैंड के पारंपरिक अभिजात वर्ग के अलावा निम्न वर्ग के लोग भी थे।
पाठकों की बढ़ती संख्या के साथ लेखकों की आमदनी भी बढ़ने लगी। इससे लेखकों को अभिजात और कुलीन वर्ग के संरक्षण से आजादी मिली। लेखक अब अधिक स्वतंत्र होकर लिखने लगे। अब लेखक को इस बात की पूरी छूट थी कि वह अपनी लेखन शैली में मनचाहे बदलाव कर सकता था।
प्रकाशन बाजार
शुरु शुरु में उपन्यास इतने महंगे होते थे कि गरीब लोगों की पहुँच से दूर होते थे। 1740 में ऐसे पुस्तकालयों का प्रचलन शुरु हुआ जो किराये पर उपन्यास देते थे। इससे उपन्यास आम लोगों की पहुँच में आ गये। प्रिंट टेक्नॉलोजी में कई सुधारों के साथ साथ मार्केटिंग के नये तरीकों से उपन्यास की बिक्री बढ़ी और दाम कम हुए। उदाहरण के लिए फ्रांस के कुछ प्रकाशकों को ये समझ में आ गया कि उपन्यास को घंटे के हिसाब से किराया पर देने से बहुत मुनाफा कमाया जा सकता है।
उपन्यासों में चित्रित दुनिया अधिक वास्तविक होती थी और इसलिए विश्वसनीयता की सीमा में आती थी। उपन्यास पढ़ते समय पाठक आसानी से उपन्यास के पात्रों की दुनिया में चला जाता था। उपन्यास ने लोगों को एकांत में पढ़ने की आजादी दी। उपन्यास ने लोगों को इस बात की आजादी भी दी कि वे सार्वजनिक परिवेश में पढ़ सकें और कहानी पर चर्चा कर सकें। लोग अक्सर उपन्यास के चरित्रों के जीवन से अपने आप को आत्मसात कर लेते थे।
1836 में चार्ल्स डिकेन्स की पिकविक पेपर्स को एक पत्रिका में धारावाहिक के रुप में प्रकाशित किया गया। पत्रिकाएँ सस्ती होती थीं और चित्रों से भरपूर होती थीं। धारावाहिक के रूप में आने से लोगों में सस्पेंस बना रहता था जिसे लोग पसंद भी करते थे। वे कहानी के अगले प्लॉट के इंतजार में आसानी से अगले सप्ताह के आने का इंतजार करते थे।
उपन्यास की दुनिया
पुराने दौर के साहित्य के विपरीत, उपन्यासों में राजा या साम्राज्य की कहानी नहीं होती थी। उपन्यासों में साधारण लोगों की बातें होती थीं। उन्नीसवीं सदी में यूरोप में औद्योगिक युग शुरु हो चुका था। औद्योगीकरण से एक ओर नई उम्मीदें जगी थीं वहीं दूसरी ओर मजदूरों और शहरी जीवन की समस्याएँ भी खड़ी हुई थीं। मुनाफे की होड़ में हमेशा साधारण मजदूर ही मार खाता था। कई उपन्यासकारों ने नये शहरों में रहने वाले आम लोगों के इर्द गिर्द कहानी बुनी थी। उस काल के जाने माने लेखकों में चार्ल्स डिकेन्स और एमिल जोला का नाम शुमार है।
समुदाय और समाज
उपन्यास में समाज में होने वाले बदलावों की झलक मिलती है। कई उपन्यासकारों ने शहरी जीवन की समस्याओं के बारे में लिखा। कई लोगों ने आधुनिक टेक्नॉलोजी के कारण ग्रामीण जीवन में आने वाले बदलावों के बारे में लिखा। लोग अधिक से अधिक पेशेवर होते जा रहे थे और व्यक्तिगत मूल्यों का ह्रास हो रहा था। उपन्यासों में इन सभी बदलावों के बारे में लिखा जाता था।
थॉमस हार्डी का उपन्यास मेयर ऑफ कास्टरब्रिज (1886) ग्रामीण परिवेश पर लिखा गया उपन्यास है। हार्डी के उपन्यास में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल हुआ है। आम बोलचाल की भाषा का उपयोग करके हार्डी ने उस जमाने में रहने वाले आम लोगों का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है।
नई महिला
अठारहवीं सदी में मध्यम वर्ग अधिक संपन्न हो चुका था। महिलाओं को अब खाली समय मिलने लगा जिसका इस्तेमाल वे उपन्यास पढ़ने या लिखने में कर सकती थीं। उपन्यासकारों ने महिलाओं के जीवन पर लिखना शुरु किया। कई उपन्यास घरेलू जीवन के बारे में थे। घरेलू जीवन के बारे में लिखने के मामले में किसी महिला लेखिका को पुरुष लेखक के मुकाबले अधिक दक्षता हासिल थी। कई महिला उपन्यासकारों ने समाज के स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाने शुरु कर दिये। कई उपन्यासकारों ने समाज में उपस्थित पाखंडों पर भी सवाल उठाया।
युवाओं के लिए उपन्यास
युवा लड़कों के लिए लिखे गये उपन्यासों में हीरो की छवि को प्रमुखता दी जाती थी। ऐसे उपन्यास का हीरो एक शक्तिशाली, आदर्श, स्पष्टवादी और बहादुर इंसान होता था। चूँकि यह उपनिवेशों के विस्तार का समय था इसलिए ज्यादातर उपन्यासों में उपनिवेशवाद की बड़ाई की जाती थी। आर एल स्टीवेंसन की ट्रेजर आइलैंड (1883) और रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक (1894) काफी मशहूर हुई थी। अंग्रेजी साम्राज्य के चरम पर जी ए हेनरी के ऐतिहासिक साहसिक उपन्यास काफी लोकप्रिय हुए थे।
उपनिवेशवाद के बाद
उपनिवेशवाद के समय अधिकांश उपन्यासों में उपनिवेशवाद की प्रशंसा की गई थी और इसे जीत के रूप में दिखाया गया था। बाद में बीसवीं सदी में कुछ उपन्यासों में उपनिवेशी शासन के नकारात्मक पहलुओं को भी दिखाया गया। जोसफ कॉनरैड (1857 – 1924) ऐसे ही एक उपन्यासकार थे।
उपन्यास का भारत में आगमन
पश्चिमी उपन्यासों के भारत में आने के बाद भारत में उपन्यास का आधुनिक रूप उन्नीसवीं सदी में विकसित हुआ। शुरु शुरु में भारत के लेखकों ने अंग्रेजी उपन्यासों का अनुवाद करना शुरु किया। लेकिन अधिकांश लेखकों को इस काम से संतुष्टि नहीं मिली। बाद में कई लेखकों ने अपनी भाषा में और भारतीय समाज के परिवेश पर उपन्यास लिखना शुरु किया।
भारत में शुरु के कुछ उपन्यास बंगाली और मराठी में लिखे गये। बाबा पद्मनजी का यमुना पर्यटन (1857) मराठी भाषा का सबसे पहला उपन्यास था। उसके बाद लक्ष्मण मोरेसर हालबे ने मुक्तमाला (1861) लिखा।
उन्नीसवीं सदी के अग्रणी उपन्यासकारों ने देश के लिए एक आधुनिक साहित्य की रचना करने की दिशा में काम किया। वे चाहते थे कि भारत में के राष्ट्रवादी भावना का संचार हो और लोग अपने आप को अपने उपनिवेशी शासकों से कम न समझें।
दक्षिण भारत में उपन्यास
- मलयालम भाषा का पहला उपन्यास इंदुलेख (1889) ओ चंदू मेनन ने लिखा था।
- तेलुगु भाषा का उपन्यास राजशेखर करितमु (1878) कंदुकुरी वीरेसलिंगम ने लिखा था।
हिंदी में उपन्यास
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का अग्रणी लेखक माना जाता है। उन्होंने अपने संपर्क में रहने वाले कई लेखकों और कवियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया था कि वे अन्य भाषाओं के उपन्यासों का अनुवाद करें। सही मायने में हिंदी का सबसे पहला उपन्यास दिल्ली के श्रीनिवास दास द्वारा लिखा गया। इस का शीर्षक था परीक्षा गुरु जिसे 1882 में प्रकाशित किया गया। इस उपन्यास में पाश्चात्य सभ्यता की अंधी नकल के दुष्परिणामों को बताया गया है और पारंपरिक भारतीय संस्कृति को बचाने की वकालत की गई है। इस उपन्यास के पात्र पूरब और पश्चिम की दुनिया के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं और दोनों के बीच एक पुल बनाने का काम करते हैं।
देवकी नंदन खत्री की रचनाओं ने हिंदी में पाठकों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर दिया। उनकी सबसे अधिक बिकने वाली किताब थी चंद्रलेखा। ऐसा माना जाता है कि इस उपन्यास ने उस जमाने के अभिजात वर्ग में हिंदी भाषा और देवनागरी लिपी को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
प्रेमचंद की रचनाओं के साथ ही हिंदी उपन्यास अपने सबसे अच्छे दौर में पहुँच चुका था। प्रेमचंद ने उर्दू में लिखना शुरु किया था और बाद में वे हिंदी पर आ गये। उनपर किस्सागोई की पारंपरिक कला का गहरा प्रभाव था। उनकी सरल भाषा ही उनकी रचना की सबसे बड़ी विशेषता थी। प्रेमचंद ने समाज के हर वर्ग के लोगों का चित्रण किया था। उनकी कई रचनाओं के मुख्य पात्र समाज के दबे कुचले वर्ग से आते थे।
बंगाल में उपन्यास
कई बंगाली लेखक ऐतिहासिक विषयों पर बहुत अच्छा लिखते थे तो कई अन्य तत्कालीन मुद्दों पर लिखते थे। बंगाल के नये भद्रलोक को उपन्यासों की दुनिया बहुत भाती थी। बंकिमचंद ने दुर्गेशनंदिनी (1865) में लिखा था जिसे साहित्यिक परिपक्वता के लिये काफी सराहा गया।
शुरुआती दौर के बंगाली उपन्यासों में शहरों की बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल होता था। कुछ उपन्यासों में महिलाओं में प्रचलित बोली; मेयेली का भरपूर इस्तेमाल हुआ था। लेकिन बंकिम की रचना कहीं अधिक अभिजात्य थी जिसमें कई बोलियों का भी पुट था।
सरल भाषा में कहानी का ताना बाना बुनने की खूबियों के कारण शरत चंद्र चट्टोपाध्याय (1876 – 1938) न केवल बंगाल में लोकप्रिय थे बल्कि भारत के अन्य भागों में भी बहुत मशहूर थे।
Ncert Solution
प्रश्न:1 इनकी व्याख्या करें:
प्रश्न:a) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।
उत्तर: औद्योगिक क्राँति के बाद ब्रिटेन की महिलाओं के पास खाली समय बचने लगा। इस दौरान महिलाओं में साक्षरता भी बढ़ गई। इसलिए अब अधिक से अधिक महिलाएँ अपने खाली समय का उपयोग पढ़ने के लिए करती थीं। इसलिए पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।
प्रश्न:b) राबिंसन क्रूसो के वे कौन से कृत्य हैं, जिनके कारण वह हमें ठेठ उपनिवेशकार दिखाई देने लगता है।
उत्तर: राबिंसन क्रूसो ने अश्वेत लोगों को मनुष्यों की तरह नहीं बल्कि नीच प्राणियों की तरह चित्रित किया है। वह उन्हें गुलाम बना लेता है। वह उनके नाम नहीं पूछता बल्कि किसी का नाम फ्राइडे रख देता है। उसकी इन हरकतों से पता चलता है कि रॉबिन्सन क्रूसो एक ठेठ उपनिवेशकार था।
प्रश्न:c) 1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
उत्तर: उस जमाने में उपन्यास महंगे हुआ करते थे। 1740 के बाद किराये पर किताबें देने वाले पुस्तकालयों का प्रचलन शुरु हुआ। इसलिए उसके बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
प्रश्न:d) औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
उत्तर: जिस तरीके से औपनिवेशी शासक भारत के इतिहास और वर्तमान की व्याख्या करते थे उससे कई उपन्यासकार सहमत नहीं थे। वह भारत की अपनी एक अलग तसवीर बनाना चाहते थे। कई उपन्यासकार भारतीय साहित्य और भारतीय जनता को अन्य से बेहतर दिखाना चाहते थे। इसलिए औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
प्रश्न:2 तकनीक और समाज में आए उन बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
उत्तर: प्रिंट टेक्नॉलोजी में कई ऐसे सुधार आये जिनके किसी किताब की असंख्य कॉपियाँ छापना संभव हो गया था। इस दौरान यूरोप में साक्षरता दर भी बढ़ गई थी। लोग पहले अधिक अमीर हो चुके थे और उनके पास खाली समय भी रहने लगा था। प्रकाशकों की सटीक मार्केटिंग से भी उपन्यासों की बिक्री बढ़ाने में मदद मिली। अब लेखक किसी रईस के संरक्षण से स्वतंत्र हो चुके थे और अपनी रचनात्मक स्वतंत्रता का भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे। इन सब कारणों से अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
प्रश्न:3 निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
प्रश्न:a) उड़िया उपन्यास
उत्तर: नाटककार रामाशंकर रे ने 1877 – 78 में पहले उड़िया उपन्यास को धारावाहिक के रूप में पेश करना शुरु किया। लेकिन वह इस काम को पूरा नहीं कर पाये। उसके तीस साल के भीतर उड़ीसा से एक प्रमुख उपन्यासकार उभरा जिसका नाम था फकीर मोहन सेनापति (1843 – 1918)। उनके उपन्यास का शीर्षक है छ: माणौ आठौ गुंठो (1902)(1902) जिसका मतलब है छ: एकड़ और बत्तीस गट्ठे जमीन। इस उपन्यास में जमीन हड़पने की समस्या का जिक्र है।
प्रश्न:b) जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण
उत्तर: जेन ऑस्टिन ने अपने जमाने की ग्रामीण औरतों के बारे में लिखा था। उनके उपन्यास की ग्रामीण महिला हमेशा अपने लिए एक योग्य वर की तलाश में लगी रहती है और कोई धनी आदमी ही योग्य वर हो सकता है।
प्रश्न:c) उपन्यास परीक्षा गुरु में दर्शाई गई नए मध्यवर्ग की तसवीर
उत्तर: उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ में मध्यवर्ग को ऐसी स्थिति में दिखाया गया है जहाँ परंपरा और आधुनिक जीवन शैली के बीच होने वाले टकराव को दिखाया गया है। इस उपन्यास के पात्र अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं फिर भी संस्कृत के अच्छे जानकार हैं। वे पाश्चात्य ड्रेस पहनते हैं लेकिन लंबे बाल भी रखते हैं। यह उपन्यास पाश्चात्य संस्कृति की अंधी नकल की समस्या को उजागर करता है।
प्रश्न:4 उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेंस ने लिखा है।
उत्तर: उन्नीसवीं सदी में यूरोप में औद्योगिक युग आ चुका था। औद्योगीकरण से एक ओर नई उम्मीदें जगी थीं वहीं दूसरी ओर मजदूरों और शहरी जीवन की समस्याएँ भी खड़ी हुई थीं। मुनाफे की होड़ में हमेशा साधारण मजदूर ही मार खाता था। कई उपन्यासकारों ने नये शहरों में रहने वाले साधारण लोगों के इर्द गिर्द कहानी बुनी थी।
प्रश्न:5 उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें।
उत्तर: महिलाएँ अक्सर चारदीवारी के अंदर रहती थीं। उपन्यास ने उनके लिए बाहरी दुनिया की ओर खुलने वाली खिड़की का काम किया। उपन्यास ने उन्हें अपने निजी दुनिया में पढ़ने का आनंद उठाने की आजादी दी। लेकिन महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी। यह बात भारत में खासकर से लागू होती थी। इससे महिलाओं के प्रति भेदभाव का पता चलता है।
प्रश्न:6 औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?
उत्तर: उपनिवेशकारों के लिये उपन्यास से भारत के समाज और संस्कृति के बारे में अच्छी जानकारी मिल जाती थी। इससे भारत के बारे में उनकी समझ बेहतर हो पाती थी। उपन्यास के जरिये राष्ट्रवादी लोगों में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार कर सकते थे। कई राष्ट्रवादी नेता स्वयं भी कई उपन्यासों से गहरे तौर पर प्रभावित हुए थे।
प्रश्न:7 इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदाहरण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठकों को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।
उत्तर: कई लेखकों ने नीची जाति के लोगों के बारे में लिखना शुरु किया। उदाहरण के लिए सरस्वतीविजयम एक उपन्यास है जिसमें नम्बूदिरी और नायर जाति के बीच के टकराव को दिखाया गया है। केरल में नम्बूदिरी जाति के लोग जमींदार होते थे और उनके खेतों में नायर जाति के लोग काश्तकारी करते थे। इस उपन्यास में एक नायर लड़की की कहानी है। इस कहानी में वह एक रईस लेकिन मूर्ख नम्बूदिरी से शादी करने से मना कर देती है और बदले में एक पढ़े लिखे नायर से शादी करती है। फिर नव दंपति मद्रास चले जाते हैं जहाँ पति सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर लेता है। इस उपन्यास में इस बात के महत्व को बताया गया है कि कैसे शिक्षा के सहारे कोई सामाजिक व्यवस्था में ऊपर उठ सकता है। इसी तरह बंगाली उपन्यास तीताश एकटी नदीर नाम में मल्लाहों के जीवन के बारे में लिखा गया है।
प्रश्न:8 बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई।
उत्तर: जीवन के हर क्षेत्र के लोग उपन्यास पढ़ सकते थे। इससे किसी की भाषा के आधार पर लोगों में साझा पहचान की भावना घर करने लगी। उपन्यास से लोगों को देश के दूसरे हिस्सों की संस्कृति को समझने का मौका भी मिला। इस तरह से उपन्यास से एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने में काफी मदद मिली।
Extra Questions Answers
प्रश्न:1 उपन्यासों के आने से लेखकों को क्या फायदा हुआ?
उत्तर: पाठकों की बढ़ती संख्या के साथ लेखकों की आमदनी भी बढ़ने लगी। इससे लेखकों को अभिजात और कुलीन वर्ग के संरक्षण से आजादी मिली। लेखक अब अधिक स्वतंत्र होकर लिखने लगे। अब लेखक को इस बात की पूरी छूट थी कि वह अपनी लेखन शैली में मनचाहे बदलाव कर सकता था।
प्रश्न:2 उपन्यासों की लोकप्रियता क्यों बढ़ी?
उत्तर: उपन्यासों में चित्रित दुनिया अधिक वास्तविक होती थी और इसलिए विश्वसनीयता की सीमा में आती थी। उपन्यास पढ़ते समय पाठक आसानी से उपन्यास के पात्रों की दुनिया में चला जाता था। उपन्यास ने लोगों को एकांत में पढ़ने की आजादी दी। उपन्यास ने लोगों को इस बात की आजादी भी दी कि वे सार्वजनिक परिवेश में पढ़ सकें और कहानी पर चर्चा कर सकें। लोग अक्सर उपन्यास के चरित्रों के जीवन से अपने आप को आत्मसात कर लेते थे। इसलिये उपन्यास लोकप्रिय होने लगे।
प्रश्न:3 उपन्यासकारों ने महिलाओं के जीवन पर लिखना क्यों शुरु किया?
उत्तर: अठारहवीं सदी में मध्यम वर्ग अधिक संपन्न हो चुका था। महिलाओं को अब खाली समय मिलने लगा जिसका इस्तेमाल वे उपन्यास पढ़ने या लिखने में कर सकती थीं। इसलिये उपन्यासकारों ने महिलाओं के जीवन पर लिखना शुरु किया।
प्रश्न:4 हिंदी में उपन्यास की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर: भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का अग्रणी लेखक माना जाता है। उन्होंने अपने संपर्क में रहने वाले कई लेखकों और कवियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया था कि वे अन्य भाषाओं के उपन्यासों का अनुवाद करें। देवकी नंदन खत्री की रचनाओं ने हिंदी में पाठकों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर दिया। प्रेमचंद की रचनाओं के साथ ही हिंदी उपन्यास अपने सबसे अच्छे दौर में पहुँच चुका था। प्रेमचंद ने उर्दू में लिखना शुरु किया था और बाद में वे हिंदी पर आ गये।
प्रश्न:5 भारत में महिलाओं और युवाओं को उपन्यास पढ़ने से क्यों रोका जाता था?
उत्तर: कई लोग ऐसा मानते थे कि उपन्यास से लोगों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। इसलिये महिलाओं और बच्चों को अक्सर उपन्यास पढ़ने से रोका जाता था। कई लोग उपन्यास को छुपा कर रखते थे ताकि वे बच्चों के हाथों में न पड़ जाएँ। युवाओं को उपन्यास छुपकर पढ़ना पड़ता था। बूढ़ी औरतें अपने नाती पोतों की मदद से उपन्यास को सुनने का मजा लेती थीं।
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