2.भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
किसी भी अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रक या सेक्टर में बाँटा जाता है:
- प्राथमिक या प्राइमरी सेक्टर
- द्वितीयक या सेकंडरी सेक्टर
- तृतीयक या टरशियरी सेक्टर
प्राइमरी सेक्टर: इस सेक्टर में होने वाली आर्थिक क्रियाओं में मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से उत्पादन किया जाता है। उदाहरण: कृषि और कृषि से संबंधित क्रियाकलाप, खनन, आदि।
सेकंडरी सेक्टर: इस सेक्टर में प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के द्वारा अन्य रूपों में बदला जाता है। उदाहरण: लोहा इस्पात उद्योग, ऑटोमोबाइल, आदि।
टरशियरी सेक्टर: इस सेक्टर में होने वाली आर्थिक क्रियाओं के द्वारा अमूर्त वस्तुएँ प्रदान की जाती हैं। उदाहरण: यातायात, वित्तीय सेवाएँ, प्रबंधन सलाह, सूचना प्रौद्योगिकी, आदि।
अर्थव्यवस्था का प्राइमरी सेक्टर से टरशियरी सेक्टर की तरफ का क्रमिक विकास:
प्राचीन सभ्यताओं में सभी आर्थिक क्रियाएँ प्राइमरी सेक्टर में होती थीं। समय बदलने के साथ ऐसा समय आया जब भोजन का उत्पादन सरप्लस होने लगा। ऐसे में अन्य उत्पादों की आवश्यकता बढ़ने से सेकंडरी सेक्टर का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी में होने वाली औद्योगिक क्रांति के बाद सेकंडरी सेक्टर का तेजी से विकास हुआ।
सेकंडरी सेक्टर के विकसित होने के बाद ऐसी गतिविधियों की जरूरत होने लगी जो औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सके। उदाहरण के लिये ट्रांसपोर्ट सेक्टर से औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। औद्योगिक उत्पादों को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिये हर मुहल्ले में दुकानों की जरूरत पड़ती है। लोगों को अन्य कई सेवाओं की आवश्यकता होती है, जैसे कि एकाउंटेंट, ट्यूटर, मैरेज प्लानर, सॉफ्टवेयर डेवलपर, आदि की सेवाएँ। ये सभी टरशियरी सेक्टर में आते हैं।
विभिन्न सेक्टर की पारस्परिक निर्भरता:
इस पारस्परिक निर्भरता को समझने के लिए बिस्किट का उदाहरण लेते हैं। एक बिस्किट का निर्माण मैदा, पानी, चीनी और कृत्रिम फ्लेवर से होता है। मैदा के उत्पादन के लिये गेहूँ की खेती जरूरी है। चीनी के लिये गन्ने का उत्पादन जरूरी है। मैदा और चीनी को बिस्किट फैक्ट्री तक पहुँचाने के लिये ट्रकों की जरूरत पड़ती है। खेतों और कारखानों में मजदूरों और मैनेजरों की जरूरत होती है। किसान को गेहूँ और गन्ना उपजाने के लिये खाद और बीज की जरूरत पड़ती है। इस उत्पादन के हर चरण पर पैसे का लेनदेन होता है। उस लेनदेन का हिसाब रखने के लिये एकाउंटेंट की जरूरत होती है। इस उदाहरण से विभिन्न सेक्टर की पारस्परिक निर्भरता का पता चलता है।
भारत में विभिन्न सेक्टर का विकास और वर्तमान स्थिति
भारतीय अर्थव्यवस्था में अलग अलग सेक्टर का वैल्यू
गये ग्राफ को ध्यान से देखिए।
- पहले ग्राफ में 1973 से 2003 तक अलग अलग सेक्टर के वैल्यू को रुपये में दिखाया गया है।
- दूसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर की जीडीपी में भागीदारी को दिखाया गया है।
- तीसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर द्वारा प्रदान किये गये रोजगार के अवसरों को दिखाया गया है।
- पहले ग्राफ से पता चलता है की इन तीस वर्षों में तीनों सेक्टर में जबरदस्त वृद्धि हुई है। यह हमारी अर्थव्यवस्था के विकास को दिखाता है।
- पहले ग्राफ में 1973 से 2003 तक अलग अलग सेक्टर के वैल्यू को रुपये में दिखाया गया है।
- दूसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर की जीडीपी में भागीदारी को दिखाया गया है।
- तीसरे ग्राफ में इन तीस सालों में इन सेक्टर द्वारा प्रदान किये गये रोजगार के अवसरों को दिखाया गया है।
- पहले ग्राफ से पता चलता है की इन तीस वर्षों में तीनों सेक्टर में जबरदस्त वृद्धि हुई है। यह हमारी अर्थव्यवस्था के विकास को दिखाता है।
भारत के जीडीपी में अलग अलग सेक्टर का शेअर
दूसरे ग्राफ से यह पता चलता है कि जीडीपी में कृषि का शेअर तेजी से गिरा है, उद्योग का शेअर स्थिर रहा है लेकिन सेवाओं का शेअर तेजी से बढ़ा है। सेवा सेक्टर की वृद्धि 35% से 55% हो गई है। यह सेवा सेक्टर के लिये बहुत अच्छा माना जा सकता है।
दूसरे ग्राफ से यह पता चलता है कि जीडीपी में कृषि का शेअर तेजी से गिरा है, उद्योग का शेअर स्थिर रहा है लेकिन सेवाओं का शेअर तेजी से बढ़ा है। सेवा सेक्टर की वृद्धि 35% से 55% हो गई है। यह सेवा सेक्टर के लिये बहुत अच्छा माना जा सकता है।
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