4.जाति, धर्म और लैंगिक मसले
श्रम का लैंगिक विभाजन
श्रम का लैंगिक विभाजन एक कटु सत्य है जो हमारे घरों और समाज में प्रत्यक्ष दिखाई देता है। घर के कामकाज महिलाओं द्वारा किये जाते हैं या महिलाओं की देखरेख में नौकरों द्वारा किये जाते हैं। पुरुषों द्वारा बाहर के काम काज किये जाते हैं। एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चारदीवारी में समेट कर रखा जाता है।
नारीवादी आंदोलन:
महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
हाल के वर्षों में लैंगिक मसलों को लेकर राजनैतिक गतिविधियों के कारण सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की स्थिति काफी सुधर गई है। भारत का समाज एक पितृ प्रधान समाज है। इसके बावजूद आज महिलाएँ कई क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।
महिलाओं को अभी भी कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं:
पुरुषों में 76% के मुकाबले महिलाओं में साक्षरता दर केवल 54% है।
ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।
आज भी अधिकाँश परिवारों में लड़कियों के मुकाबले लड़कों को अधिक प्रश्रय दिया जाता है। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिसमें कन्या को भ्रूण अवस्था में ही मार दिया जाता है। भारत का लिंग अनुपात महिलाओं के पक्ष में दूर दूर तक नहीं है।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के कई मामले सामने आते हैं और ये घटनाएँ घर में और घर के बाहर भी होती हैं।
महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व
राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।
स्थानीय स्वशासी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए ऐसे निकायों की एक तिहाई सीटों को महिलाओं के लिये आरक्षित किया गया है। लेकिन संसद में महिलाओं के लिये आरक्षण का बिल लंबे समय से लंबित है।
धर्म और राजनीति:
धर्म हमारे राजनीतिक और सामाजिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। कुछ देशों में बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय को बढ़ावा दिया जाता है जिससे अल्पसंख्यक समुदाय का भारी नुकसान होता है। इससे बहुसंख्यक आतंक को पोषण मिलता है।
सांप्रदायिकता:
जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।
राजनीति में सांप्रदायिकता के कई रूप हो सकते हैं:
कुछ लोगों को लगता है कि उनका धर्म अन्य धर्मों से बेहतर है। ऐसे लोग अक्सर दूसरे धर्म के लोगों पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश करते हैं और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। इसके फलस्वरूप अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है।
संप्रदाय के नाम पर समाज में ध्रुवीकरण की अक्सर कोशिश की जाती है। किसी अल्पसंख्यक समुदाय में भय भरने के लिये धार्मिक चिह्नों, धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपीलों का इस्तेमाल किया जाता है।
कई बार सांप्रदायिकता उग्र रूप ले लेती है और फिर सांप्रदायिक दंगे और नरसंहार होते हैं।
कुछ लोगों को लगता है कि उनका धर्म अन्य धर्मों से बेहतर है। ऐसे लोग अक्सर दूसरे धर्म के लोगों पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश करते हैं और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। इसके फलस्वरूप अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है।
संप्रदाय के नाम पर समाज में ध्रुवीकरण की अक्सर कोशिश की जाती है। किसी अल्पसंख्यक समुदाय में भय भरने के लिये धार्मिक चिह्नों, धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपीलों का इस्तेमाल किया जाता है।
कई बार सांप्रदायिकता उग्र रूप ले लेती है और फिर सांप्रदायिक दंगे और नरसंहार होते हैं।
धर्मनिरपेक्ष शासन
जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
भारत के संविधान में यह घोषित किया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारे संविधान के अनुसार भारत में कोई भी धर्म राजकीय धर्म नहीं माना गया है।
भारत में लोगों को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को मानने की छूट देता है। संविधान धर्म के नाम पर भेदभाव की मनाही करता है।
लेकिन भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।
जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
भारत के संविधान में यह घोषित किया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारे संविधान के अनुसार भारत में कोई भी धर्म राजकीय धर्म नहीं माना गया है।
भारत में लोगों को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को मानने की छूट देता है। संविधान धर्म के नाम पर भेदभाव की मनाही करता है।
लेकिन भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।
जाति और राजनीति
जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अनूठी खासियत है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती है। जाति व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति का एक तय पेशा होता है। उस पेशे का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता है। अक्सर किसी भी जाति के लोगों में अपने समुदाय या जाति विशेसः के प्रति गहरा लगाव होता है। कुछ जातियों को ऊँची जाति माना जाता है तो कुछ को नीची जाति।
जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अनूठी खासियत है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती है। जाति व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति का एक तय पेशा होता है। उस पेशे का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता है। अक्सर किसी भी जाति के लोगों में अपने समुदाय या जाति विशेसः के प्रति गहरा लगाव होता है। कुछ जातियों को ऊँची जाति माना जाता है तो कुछ को नीची जाति।
जाति पर आधारित पूर्वाग्रह:
हमारे समाज में जाति पर आधारिक कई पूर्वाग्रह हैं। अभी भी ग्रामीण परिवेश में नीची जाति के लोगों को ऊँची जाति के लोगों के सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। ऊँची जाति के कई लोग तो दलितों की परछाई से भी दूर रहते हैं।
लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
अभी भी जब शादी करने की बात आती है तो जाति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। लेकिन जीवन के अन्य संदर्भ में भारत में जाति का प्रभाव खत्म होता जा रहा है।
सदियों से उँची जाति के लोगों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिले इसलिये उन्होंने आर्थिक रूप से अधिक तरक्की की। पिछड़ी जाति के लोग अभी भी सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में पीछे चल रहे हैं।
हमारे समाज में जाति पर आधारिक कई पूर्वाग्रह हैं। अभी भी ग्रामीण परिवेश में नीची जाति के लोगों को ऊँची जाति के लोगों के सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। ऊँची जाति के कई लोग तो दलितों की परछाई से भी दूर रहते हैं।
लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
अभी भी जब शादी करने की बात आती है तो जाति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। लेकिन जीवन के अन्य संदर्भ में भारत में जाति का प्रभाव खत्म होता जा रहा है।
सदियों से उँची जाति के लोगों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिले इसलिये उन्होंने आर्थिक रूप से अधिक तरक्की की। पिछड़ी जाति के लोग अभी भी सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में पीछे चल रहे हैं।
राजनीति में जाति
भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
हर जाति के लोग राजनैतिक सत्ता में अपना हक लेने के लिये अपनी जातिगत पहचान को अलग अलग तरीकों से व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।
चूँकि जातियों की बहुत बड़ी संख्या है इसलिये कई जातियों ने मिलकर अपना एक खास गठबंधन बना लिया है ताकि राजनैतिक मोलभाव में उन्हें बढ़त मिल सके।
जाति समूहों को मुख्य रूप से ‘अगड़े’ और ‘पिछड़े’ वर्गों में बाँटा जा सकता है।
लेकिन जातिगत विभाजन से अकसर समाज में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और हिंसा भी हो सकती है।
भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
हर जाति के लोग राजनैतिक सत्ता में अपना हक लेने के लिये अपनी जातिगत पहचान को अलग अलग तरीकों से व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।
चूँकि जातियों की बहुत बड़ी संख्या है इसलिये कई जातियों ने मिलकर अपना एक खास गठबंधन बना लिया है ताकि राजनैतिक मोलभाव में उन्हें बढ़त मिल सके।
जाति समूहों को मुख्य रूप से ‘अगड़े’ और ‘पिछड़े’ वर्गों में बाँटा जा सकता है।
लेकिन जातिगत विभाजन से अकसर समाज में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और हिंसा भी हो सकती है।
जातिगत असामनता
जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों की जनसंख्या का प्रतिशत
जाति ग्रामीण शहरी
अनुसूचित जनजाति 45.8% 35.6%
अनुसूचित जाति 35.9% 38.3%
अन्य पिछड़ी जातियाँ 27% 29.3%
मुस्लिम अगली जातियाँ 26.8% 34.2%
हिंदू अगली जातियाँ 11.7% 9.9%
ईसाई अगली जातियाँ 9.6% 5.4%
सिख अगली जातियाँ 0% 4.9%
अन्य अगली जातियाँ 16% 2.7%
REF: NSSO 55th round 1999 - 2000
जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों की जनसंख्या का प्रतिशत | ||
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जाति | ग्रामीण | शहरी |
अनुसूचित जनजाति | 45.8% | 35.6% |
अनुसूचित जाति | 35.9% | 38.3% |
अन्य पिछड़ी जातियाँ | 27% | 29.3% |
मुस्लिम अगली जातियाँ | 26.8% | 34.2% |
हिंदू अगली जातियाँ | 11.7% | 9.9% |
ईसाई अगली जातियाँ | 9.6% | 5.4% |
सिख अगली जातियाँ | 0% | 4.9% |
अन्य अगली जातियाँ | 16% | 2.7% |
REF: NSSO 55th round 1999 - 2000
NCERT Solution
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न 1:निम्नलिखित में से कौन सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
- स्थानांतरी कृषि
- बागवानी
- रोपन कृषि
- गहन कृषि
उत्तर: बागवानी
प्रश्न 2:इनमें से कौन सी रबी फसल है?
- चावल
- चना
- मोटे अनाज
- कपास
उत्तर: चना
प्रश्न 3:इनमें से कौन सी एक फलीदार फसल है?
- दालें
- ज्वार तिल
- मोटे अनाज
- तिल
उत्तर: दालें
प्रश्न 4:सरकार निम्नलिखित में से कौन सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती है?
- अधिकतम सहायता मूल्य
- मध्यम सहायता मूल्य
- न्यूनतम सहायता मूल्य
- प्रभावी सहायता मूल्य
उत्तर: न्यूनतम सहायता मूल्य
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1:एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का विवरण दें।
उत्तर: चाय एक पेय फसल है। चाय की पैदावार उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में अच्छी होती है और इसके लिए गहरी मिट्टी और सुगम जल निकास वाले ढ़लुवा क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। चाय के उत्पादन में गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2:भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दें।
>उत्तर: गेहूँ एक खाद्य फसल है। पश्चिम उत्तर के गंगा सतलज के मैदान और दक्कन के काली मृदा वाले क्षेत्र भारत के मुख्य गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं। गेहूँ के मुख्य उत्पादक हैं पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग।
प्रश्न 3:सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।
उत्तर: सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
हरित क्रांति
श्वेत क्रांति
भूमि सुधार
प्रश्न 4:4. दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?
उत्तर: दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम होने से खाद्यान्न की कमी हो जाएगी। भोजन एक मूलभूत आवश्यकता है जिसके बिना हमारी उत्तरजीविता संकट में पड़ जाएगी। भोजन की कमी से समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1:कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
उत्तर: कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
- पूरे देश में भूमि सुधार करना चाहिए।
- वैज्ञानिकों को अधिक यील्ड वाले बीज विकसित करने चाहिए।
- नहरों, सड़कों और कोल्ड स्टोरेज को अच्छी तरह से विकसित करना चाहिए।
- मोबाइल फोन के जरिए किसानों तक समय रहते मौसम की जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए।
प्रश्न 2:भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: वर्तमान में पश्चिमी देशों के किसानों को अत्यधिक सहायिकी मिलने के कारण भारत के किसान उनसे प्रतिस्पर्धा करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत के कृषि उत्पाद की मांग बहुत कम है। साथ में रासायनिक उर्वरक और सिंचाई के अत्यधिक इस्तेमाल ने नई समस्याएँ खड़ी कर दी है जिससे कृषि उत्पाद घट रहा है। भारत में कृषि पर बहुत अधिक लोग निर्भर हैं इसलिए प्रति व्यक्ति कृषि उत्पाद और भी कम होने वाली है। कई विशेषज्ञों की राय में कार्बनिक कृषि से इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।
प्रश्न 3:चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर: धान की खेती के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक), अधिक आर्द्रता और 100 सेमी से अधिक की सालाना वर्षा की जरूरत होती है। लेकिन कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसे सिंचाई की समुचित व्यवस्था करके उगाया जा सकता है। चावल की खेती उत्तर के मैदानों, पूर्वोत्तर भारत, तटीय इलाकों और डेल्टा के क्षेत्रों में होती है। जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में चावल की पैदावार अच्छी होती है। लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था विकसित करने से चावल की खेती अन्य भागों में भी संभव है।
प्रश्न 1:निम्नलिखित में से कौन सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
- स्थानांतरी कृषि
- बागवानी
- रोपन कृषि
- गहन कृषि
उत्तर: बागवानी
प्रश्न 2:इनमें से कौन सी रबी फसल है?
- चावल
- चना
- मोटे अनाज
- कपास
उत्तर: चना
प्रश्न 3:इनमें से कौन सी एक फलीदार फसल है?
- दालें
- ज्वार तिल
- मोटे अनाज
- तिल
उत्तर: दालें
प्रश्न 4:सरकार निम्नलिखित में से कौन सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती है?
- अधिकतम सहायता मूल्य
- मध्यम सहायता मूल्य
- न्यूनतम सहायता मूल्य
- प्रभावी सहायता मूल्य
उत्तर: न्यूनतम सहायता मूल्य
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1:एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का विवरण दें।
उत्तर: चाय एक पेय फसल है। चाय की पैदावार उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में अच्छी होती है और इसके लिए गहरी मिट्टी और सुगम जल निकास वाले ढ़लुवा क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। चाय के उत्पादन में गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2:भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दें।
>उत्तर: गेहूँ एक खाद्य फसल है। पश्चिम उत्तर के गंगा सतलज के मैदान और दक्कन के काली मृदा वाले क्षेत्र भारत के मुख्य गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं। गेहूँ के मुख्य उत्पादक हैं पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग।
प्रश्न 3:सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।
उत्तर: सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
हरित क्रांति
श्वेत क्रांति
भूमि सुधार
प्रश्न 4:4. दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?
उत्तर: दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम होने से खाद्यान्न की कमी हो जाएगी। भोजन एक मूलभूत आवश्यकता है जिसके बिना हमारी उत्तरजीविता संकट में पड़ जाएगी। भोजन की कमी से समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 1:कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
उत्तर: कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
- पूरे देश में भूमि सुधार करना चाहिए।
- वैज्ञानिकों को अधिक यील्ड वाले बीज विकसित करने चाहिए।
- नहरों, सड़कों और कोल्ड स्टोरेज को अच्छी तरह से विकसित करना चाहिए।
- मोबाइल फोन के जरिए किसानों तक समय रहते मौसम की जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए।
प्रश्न 2:भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: वर्तमान में पश्चिमी देशों के किसानों को अत्यधिक सहायिकी मिलने के कारण भारत के किसान उनसे प्रतिस्पर्धा करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत के कृषि उत्पाद की मांग बहुत कम है। साथ में रासायनिक उर्वरक और सिंचाई के अत्यधिक इस्तेमाल ने नई समस्याएँ खड़ी कर दी है जिससे कृषि उत्पाद घट रहा है। भारत में कृषि पर बहुत अधिक लोग निर्भर हैं इसलिए प्रति व्यक्ति कृषि उत्पाद और भी कम होने वाली है। कई विशेषज्ञों की राय में कार्बनिक कृषि से इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।
प्रश्न 3:चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर: धान की खेती के लिए उच्च तापमान (25°C से अधिक), अधिक आर्द्रता और 100 सेमी से अधिक की सालाना वर्षा की जरूरत होती है। लेकिन कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसे सिंचाई की समुचित व्यवस्था करके उगाया जा सकता है। चावल की खेती उत्तर के मैदानों, पूर्वोत्तर भारत, तटीय इलाकों और डेल्टा के क्षेत्रों में होती है। जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में चावल की पैदावार अच्छी होती है। लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था विकसित करने से चावल की खेती अन्य भागों में भी संभव है।
Extra Questions Answers
प्रश्न 1:श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब ऐसा माना जाता है कि कुछ कार्य महिलाओं के लिये और कुछ पुरुषों के लिये ही बने हैं तो ऐसी स्थिति को श्रम का लैंगिक विभाजन कहते हैं।
प्रश्न 2:नारीवादी आंदोलन का क्या मतलब है?
उत्तर: महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
प्रश्न 3:आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर: आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।
प्रश्न 4:भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसा है?
उत्तर: भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।
प्रश्न 5:सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।
प्रश्न 6:धर्मनिरपेक्ष शासन का क्या मतलब है?
उत्तर: जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
प्रश्न 7:भारत सरकार किस स्थिति में धार्मिक मुद्दों में हस्तक्षेप करती है?
उत्तर: भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।
प्रश्न 8:जातिगत विभाजन किन कारणों से कम होते जा रहे हैं?
उत्तर: कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
प्रश्न 9:भारत की राजनीति में जाति का क्या महत्व है?
उत्तर: भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
प्रश्न 10:जाति के आधार पर आर्थिक विषमता पर टिप्पणी करें।
उत्तर: जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
☆END☆
प्रश्न 1:श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब ऐसा माना जाता है कि कुछ कार्य महिलाओं के लिये और कुछ पुरुषों के लिये ही बने हैं तो ऐसी स्थिति को श्रम का लैंगिक विभाजन कहते हैं।
प्रश्न 2:नारीवादी आंदोलन का क्या मतलब है?
उत्तर: महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से होने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
प्रश्न 3:आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की क्या स्थिति है?
उत्तर: आधुनिक भारत में नौकरियों में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। कई मामलों में ये भी देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन मिलता है। जबकि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ प्रतिदिन अधिक घंटे काम करती हैं।
प्रश्न 4:भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसा है?
उत्तर: भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है। महिला मंत्रियों की संख्या भी बहुत कम है।
प्रश्न 5:सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब राजनैतिक वर्ग द्वारा एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाया जाता है तो इसे सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक राजनीति कहते हैं।
प्रश्न 6:धर्मनिरपेक्ष शासन का क्या मतलब है?
उत्तर: जिस शासन व्यवस्था में सभी धर्म को समान दर्जा दिया जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष शासन कहते हैं।
प्रश्न 7:भारत सरकार किस स्थिति में धार्मिक मुद्दों में हस्तक्षेप करती है?
उत्तर: भारत का संविधान सरकार को धार्मिक मुद्दों में तब हस्तक्षेप करने की इजाजत देता है जब विभिन्न समुदायों में समानता बनाये रखने के लिये यह जरूरी हो जाये।
प्रश्न 8:जातिगत विभाजन किन कारणों से कम होते जा रहे हैं?
उत्तर: कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारण जातिगत विभाजन धूमिल पड़ते जा रहे हैं। आर्थिक विकास, तेजी से होता शहरीकरण, साक्षरता, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में जमींदारों की कमजोर स्थिति के कारण जातिगत विभाजन कम होते जा रहे हैं।
प्रश्न 9:भारत की राजनीति में जाति का क्या महत्व है?
उत्तर: भारत की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। किसी भी चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन उस क्षेत्र की जातीय समीकरण के आधार पर होता है।
प्रश्न 10:जाति के आधार पर आर्थिक विषमता पर टिप्पणी करें।
उत्तर: जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। उँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
☆END☆
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