5.जन संघर्ष और आंदोलन
लामबंदी और संगठन
राजनैतिक पार्टियाँ: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें राजनैतिक पार्टी कहते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं ताकि सरकार बना सकें।
दबाव समूह: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में परोक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें दबाव समूह कहते हैं। सरकार बनाना या सरकार चलाना कभी भी दबाव समूह का लक्ष्य नहीं होता है।
दबाव समूह और आंदोलन:
दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, रुचि, महात्वाकांछा या मतों वाले लोग किसी समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक मंच पर आते हैं। इस प्रकार के समूह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आंदोलन करते हैं। यह जरूरी नहीं कि हर दबाव समूह जन आंदोलन ही करे। कई दबाव समूह केवल अपने छोटे से समूह में ही काम करते हैं।
जन आंदोलन के कुछ उदाहरण हैं: नर्मदा बचाओ आंदोलन, सूचना के अधिकार के लिये आंदोलन, शराबबंदी के लिये आंदोलन, नारी आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन।
वर्ग विशेष के हित समूह और जन सामान्य के हित समूह
वर्ग विशेष के हित समूह: जो दबाव समूह किसी खास वर्ग या समूह के हितों के लिये काम करते हैं उन्हें वर्ग विशेष के समूह कहते हैं। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, बिजनेस एसोसियेशन, प्रोफेशनल (वकील, डॉक्टर, शिक्षक, आदि) के एसोसियेशन। ऐसे समूह किसी खास वर्ग की बात करते हैं; जैसे मजदूर, शिक्षक, कामगार, व्यवसायी, उद्योगपति, किसी धर्म के अनुयायी, आदि। ऐसे समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना।
जन सामान्य के हित समूह: जो दबाव समूह सर्व सामान्य जन के हितों की रक्षा करते हैं उन्हें जन सामान्य के हित समूह कहते हैं। ऐसे दबाव समूह का उद्देश्य होता है पूरे समाज के हितों की रक्षा करना। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, स्टूडेंट यूनियन, एक्स आर्मीमेन एसोसियेशन, आदि।
राजनीति पर दबाव समूह और आंदोलन का प्रभाव:
जन समर्थन: दबाव समूह और उनके आंदोलन अपने लक्ष्य और क्रियाकलापों के लिये जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं। इसके लिये वे तरह तरह के रास्ते अपनाते हैं, जैसे कि जागरूकता अभियान, जनसभा, पेटीशन, आदि। कई दबाव समूह जनता का ध्यान खींचने के लिए मीडिया को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
प्रदर्शन: प्रदर्शन करना किसी भी दबाव समूह का एक आम तरीका है। प्रदर्शन के दौरान हड़ताल भी किये जाते हैं ताकि सरकार के काम में बाधा उत्पन्न की जा सके। हड़ताल और बंद के द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जाता है ताकि सरकार किसी मांग की सुनवाई करे।
लॉबी करना: कुछ दबाव समूह सरकारी तंत्र में लॉबी भी करते हैं। इसके लिये अक्सर प्रोफेशनल लॉबिस्ट की सेवा ली जाती है। कई बार इश्तहार भी चलाये जाते हैं। इन समूहों में से कुछ लोग आधिकारिक निकायों और कमेटियों में भी भाग लेते हैं ताकि सरकार को सलाह दे सकें। इस तरह के समूह के उदाहरण हैं: एसोचैम और नैसकॉम।
राजनैतिक पार्टियों पर प्रभाव
दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है। हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।
भारत के अधिकांश ट्रेड यूनियन और स्टूडेंट यूनियन किसी न किसी मुख्य पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। इस तरह के समूहों के कार्यकर्ता सामान्यतया किसी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता भी होते हैं।
कई बार किसी जन आंदोलन से राजनैतिक पार्टी का भी जन्म होता है। इसके कई उदाहरण हैं; जैसे असम गण परिषद, डीएमके, एआईडीएमके, आम आदमी पार्टी, आदि। असम गण परिषद का जन्म असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चलने वाले छात्र आंदोलन के कारण 1980 के दशक में हुआ था। डीएमके और एआईडीएमके का जन्म तामिलनाडु में 1930 और 1940 के दशक में चलने वाले समाज सुधार आंदोलन के कारण हुआ था। आम आदमी पार्टी का जन्म सूचना के अधिकार और लोकपाल की मांग के आंदोलन के कारण हुआ था।
अधिकांश मामलों में दबाव समूह और किसी राजनैतिक पार्टी के बीच का रिश्ता उतना प्रत्यक्ष नहीं होता है। अक्सर यह देखा जाता है कि दोनों एक दूसरे के विरोध में ही खड़े होते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ भी दबाव समूहों द्वारा उठाये जाने वाले अधिकांश मुद्दों को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। कई बड़े राजनेता किसी दबाव समूह से ही निकलकर आये हैं।
दबाव समूह के प्रभाव का मूल्यांकन
कई लोग दबाव समूहों के खिलाफ तर्क देते हैं। कई विचारक ऐसा मानते हैं कि दबाव समूह को सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे समूह समाज के एक छोटे से वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र किसी छोटे वर्ग के संकीर्ण हितों के लिये काम नहीं करता बल्कि पूरे समाज के हितों के लिये काम करता है। राजनैतिक पार्टी को तो जनता को जवाब देना होता है लेकिन दबाव समूह पर यह बात लागू नहीं होती है। इसलिए कुछ विचारकों का मानना है कि दबाव समूह की सोच का दायरा बड़ा नहीं हो सकता है। कई बार कोई बिजनेस लॉबी या अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी भी कुछ दबाव समूहों को हवा देती रहती हैं। इसलिए दबाव समूह की बात को नाप तौलकर ही सुनना चाहिए।
कई लोग दबाव समूह का समर्थन करते हैं। कुछ विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र की जड़ें जमाने के लिये सरकार पार दबाव डालना उचित होता है। ऐसा माना जाता है कि राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता हथियाने के चक्कर में अक्सर जनता के असली मुद्दों की अवहेलना करती हैं। उनको नींद से जगाने का काम दबाव समूह का ही होता है।
ऐसा कहा जा सकता है कि दबाव समूह विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं में संतुलन का काम करते हैं और सामान्यतया लोगों की असली समस्याओं को उजागर करते हैं।
NCERT Solution
प्रश्न 1:दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर: दबाव समूह और आंदोलन निम्न तरीकों से राजनीति को प्रभावित करते हैं:
- अपने मुद्दे के लिए जन समर्थन जुटाकर।
- विरोध प्रदर्शन द्वारा सरकार पर दबाव बनाकर।
- लॉबी बनाकर।
प्रश्न 2:दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन करें।
उत्तर: सामान्यतया दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के बीच कोई प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता है। वे अक्सर एक दूसरे के विपरीत मान्यता रखते हैं। लेकिन दोनों के बीच संवाद और मोलभाव चलता रहता है। राजनीतिक दलों के कई नए नेता दबाव समूहों से आते हैं।
प्रश्न 3:दबाव समूहों कि गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर: दबाव समूहों की गतिविधियों से लोकतंत्र की जड़े मजबूत करने में मदद मिलती है। ऐसे समूह शक्तिशाली बिजनेस लॉबी के खिलाफ आम जनता की आवाज बुलंद करने में मदद करते हैं। कई बार दबाव समूहों का क्रियाकलाप विध्वंसकारी लगता है लेकिन इन क्रियाकलापों से शक्तिशाली शासक वर्ग और व्यवसायी वर्ग तथा शक्तिहीन आम नागरिक के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है।
प्रश्न 4:दबाव समूह क्या हैं? कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर: वैसे संगठन जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं उन्हें हम दबाव समूह कहते हैं। एक दबाव समूह किसी राजनीतिक दल से भिन्न होता है क्योंकि यह जनता के लिए जवाबदेह नहीं होता। दबाव समूह की शासन में कोई भागीदारी नहीं होती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन, ट्रेड यूनियन, वकीलों का संगठन, आदि दबाव समूह के उदाहरण हैं।
प्रश्न 5:दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
उत्तर: राजनीतिक दल सीधे रूप से जनता के लिए जवाबदेह होते हैं जबकि दबाव समूह के साथ ऐसा नहीं है। एक राजनीतिक दल या तो सत्ता में होता है या सत्ता हासिल करने के लिए काम करता है, लेकिन दबाव समूह के साथ ऐसा नहीं है।
प्रश्न 6:जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें ..................कहा जाता है।
उत्तर: वर्ग विशेष के हित समूह
प्रश्न 7:निम्नलिखित में से किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव समूह और राजनीतिक दल में अंतर होता है:
- राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते।
- दबाव समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला होता है।
- दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
- दबाव समूह लोगों की लामबंदी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल करते हैं।
उत्तर: दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
प्रश्न 8: सूची 1 का सूची 2 से मिलान कीजिए।
सूची 1 | सूची 2 |
---|---|
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन | a) आंदोलन |
2. जन सामान्य के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन | b) राजनीतिक दल |
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी सकती है और नहीं भी। | c) वर्ग विशेष के हित समूह |
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने की गरज से लोगों को लामबंद करता है। | d) लोक कल्याणकारी हित समूह |
उत्तर: 1 c, 2 d, 3 a, 4 b
प्रश्न 9:सूची 1 और सूची 2 का मिलान कीजिए।
सूची 1 | सूची 2 |
---|---|
1. दबाव समूह | a) नर्मदा बचाओ आंदोलन |
2. लंबी अवधि का आंदोलन | b) असम गण परिषद |
3. एक मुद्दे पर आधारित आंदोलन | c) महिला आंदोलन |
4. राजनीतिक दल | d) खाद विक्रेताओं का संघ |
उत्तर: 1 d, 2 c, 3 a, 4 b
प्रश्न 10:दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि इनमे से कौन सही हैं।
- दबाव समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
- दबाव समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई न कोई पक्ष लेते हैं।
- सभी दबाव समूह राजनीतिक दल होते हैं।
उत्तर: a और b
प्रश्न 11:मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगग्र अलग जिला बना दिया जाय तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। लेकिन राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल ऑर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की माँग उठाई। बाद में सन 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन 2005 की जुलाई में बना।
इस उदाहरण में आपको आंदोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो?
उत्तर: इस उदाहरण में आंदोलन के द्वारा राजनीतिक दलों और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की गई है। आंदोलन के परिणामस्वरूप राजनीतिक दल एक विशेष माँग को मानने का वादा करते हैं। सरकार के गठन के बाद उस माँग को मान लिया जाता है। यह उदाहरण यह दिखाता है कि आंदोलन के द्वारा सरकार से अपने पक्ष में निर्णय लिया जा सकता है लेकिन उसे मूर्तरूप देने के लिए राजनीतिक दल के समर्थन की जरूरत पड़ती है।
Extra Question Answers
प्रश्न 1:राजनैतिक पार्टी से क्या समझते हैं?
उत्तर: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें राजनैतिक पार्टी कहते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं ताकि सरकार बना सकें।
प्रश्न 2:दबाव समूह की परिभाषा बतायें।
उत्तर: जो संगठन राजनैतिक प्रक्रिया में परोक्ष रूप से भागीदारी करते हैं उन्हें दबाव समूह कहते हैं। सरकार बनाना या सरकार चलाना कभी भी दबाव समूह का लक्ष्य नहीं होता है।
प्रश्न 3:दबाव समूह का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर: दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, रुचि, महात्वाकांछा या मतों वाले लोग किसी समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक मंच पर आते हैं।
प्रश्न 4:जन आंदोलन के कुछ उदाहरण लिखिए।
उत्तर: नर्मदा बचाओ आंदोलन, सूचना के अधिकार के लिये आंदोलन, शराबबंदी के लिये आंदोलन, नारी आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन।
प्रश्न 5:वर्ग विशेष के हित समूह पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: जो दबाव समूह किसी खास वर्ग या समूह के हितों के लिये काम करते हैं उन्हें वर्ग विशेष के समूह कहते हैं। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, बिजनेस एसोसियेशन, प्रोफेशनल (वकील, डॉक्टर, शिक्षक, आदि) के एसोसियेशन। ऐसे समूह किसी खास वर्ग की बात करते हैं; जैसे मजदूर, शिक्षक, कामगार, व्यवसायी, उद्योगपति, किसी धर्म के अनुयायी, आदि। ऐसे समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना।
प्रश्न 6:जन सामान्य के हित समूह पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: जो दबाव समूह सर्व सामान्य जन के हितों की रक्षा करते हैं उन्हें जन सामान्य के हित समूह कहते हैं। ऐसे दबाव समूह का उद्देश्य होता है पूरे समाज के हितों की रक्षा करना। उदाहरण: ट्रेड यूनियन, स्टूडेंट यूनियन, एक्स आर्मीमेन एसोसियेशन, आदि।
प्रश्न 7:दबाव समूह अपने लिये जन समर्थन जुटाने के लिये क्या-क्या करते हैं?
उत्तर: इसके लिये वे तरह तरह के रास्ते अपनाते हैं, जैसे कि जागरूकता अभियान, जनसभा, पेटीशन, आदि। कई दबाव समूह जनता का ध्यान खींचने के लिए मीडिया को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न 8:दबाव समूह का राजनैतिक पार्टियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है। हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।
प्रश्न 9:दबाव समूह के समर्थन में कुछ तर्क लिखिए।
उत्तर: कुछ विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र की जड़ें जमाने के लिये सरकार पार दबाव डालना उचित होता है। ऐसा माना जाता है कि राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता हथियाने के चक्कर में अक्सर जनता के असली मुद्दों की अवहेलना करती हैं। उनको नींद से जगाने का काम दबाव समूह का ही होता है।
प्रश्न 10:दबाव समूह के विरोध में तर्क लिखिए।
उत्तर: कई विचारक ऐसा मानते हैं कि दबाव समूह को सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे समूह समाज के एक छोटे से वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र किसी छोटे वर्ग के संकीर्ण हितों के लिये काम नहीं करता बल्कि पूरे समाज के हितों के लिये काम करता है। राजनैतिक पार्टी को तो जनता को जवाब देना होता है लेकिन दबाव समूह पर यह बात लागू नहीं होती है। इसलिए कुछ विचारकों का मानना है कि दबाव समूह की सोच का दायरा बड़ा नहीं हो सकता है।
☆END☆
No comments:
Post a Comment